Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust

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Page 17
________________ औदारिकादिशरीरस्वरूपम् ॥ प्रज्ञापनो पाङ्गम् १२ शरीर अण्णातिं ॥ ३॥ लक्खाइ एकवीसं पुवंगाण सत्तरिं सहस्सा य । छच्चेवेगूणट्ठा पुबंगाणं सता होति ॥ ४॥ तेसीति सतसहस्सा पण्णासं खलु भवे सहस्सा य । तिणि सया छत्तीसा पवतिया वेगला मणुया ॥५॥ एयं चेव य संखं पुण अण्णेण पगारेण |* भण्णति विसेसोवलंभनिमित्तं, तंजहा-'अहव ण छण्णउतिछेदणगदायी रासी' छनउति छेदं जो देति रासी सो छनउतिछेदयणगदायी, किं भणितं होति ?, जो रासी दोवारा छेदेण छिज्जमाणो २ छनउतिबारे छेदं देति, सकलरूपपज्जवसितो, तत्तिता वा|* | जहण्णपतिया मणुस्सा, ततिया ओरालिया वा बद्धेल्लया, को षुण रासी छणउतिछेदणगदाई भवेजा?, भण्णति-एस चेव छटो * वग्गो पंचमवग्गपडुप्पयो जत्तिओ भणितो एस छणउतिछेदणए देति, को पच्चतो?, भण्णति-पढमो वग्गो छिजमाणो दो छेदणए देति, वितिओ चत्तारि, ततिओ अटु, चउत्थो सोलस, पंचमो छत्तीसं, छटो चउसट्ठी, एतेसिं पंचमटाणं वग्गाणं छेदणता मिलिया छन्नउति भवंति, कहं पुण?. जम्हा जो जो वग्गो जेण वग्गेण गुणिज्जइ तेसिं दोण्हवि तत्थ छेयणा लम्भंति, जहा-पढमवग्गो बितिएण गुणिओ छेदणे छ देति, बितिएण ततिओ गुणिओ बारस, ततिएण चउत्थो गुणिओ चउवीसं, चउत्थेण पंचमो:गुणिओ अडयालीसं छेदणए दॆति, एवं पंचमेण वि छटो गुणिओ छन्नउति छेदणए देति, पस पञ्चओ, अहवा रूपं ठवेऊण तं छन्नउतिवारे दुगुणा दुगुणं कीरति, कतं समाणं जति पुव्वभणियपरिमाणं पावति तो छिजमाणंपि ते चेव छेदणए दाहितित्ति पञ्चतो, एवं जहण्णपदममिहितं, उक्कोसपदमियाणिं, तत्थ इमं सुत्तं-'उक्कोसपदमसंखिज्जा, असंखिजाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं कालओ, खेत्तओ रूवपक्खित्तेहिं मणुस्सेहिं सेढी अवहीरति, किं भणियं होति?, उक्कोसे पदे जे मणुस्सा भवंति तेसु पक्कम्मि मणुस्सरूवे पक्खित्ते समाणे तेहिं मणुस्सेहिं लोगसेढी अवहीरति, तीसे य सेढीए कालखेत्तेहिं अवहारो मग्गिज्जति, कालतो ताव असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणिओसप्पिणीहिं, खित्तओ अंगुलपढमवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडुप्पण्णं, किं भणियं होति !, तीसे सेढीए अंगुलायते खंडे जो पदेसरासी तस्स जं पढमं वग्गमूलं तं ततियवग्गमूलपदेसरासिणा पडुप्पातिज्जति, पडुप्पादिए जो पदेसरासी भवति एवइएहिं खंडेहिं 4 सेढी अवहीरमाणा २ जाव निट्टाति ताव मणुस्सावि अबहीरमाणा णिट्टाति, आह-कहमेका सेढी पदहमेत्तेहिं खंडेहिं अवहीर ॥११||

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