Book Title: Pragnapana Sutra Part 02
Author(s): Haribhadrasuri, Shyamacharya
Publisher: Jinshasan Aradhak Trust
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श्री
प्रज्ञापनो
पाङ्गम् १२ शरीर०
माणा २ असंखेजाहिं उस्सप्पिणिभोसप्पिणीहिं अवहीरति ?, आयरिया आह-खित्तादि सुहमत्तणतो, सुत्ते य भणियं 'मुहुमो य|4| होति कालो तत्तो सुहुमयर हवति खित्तं । अंगुलसेढीमेत्ते उस्सप्पिणीओ असंखिज्जा ॥१॥ बेउब्बिया बदल्लया समयेर अवहीर-1 माणा २ संखिज्जेणे कालेणं भवहीरति, पठितसिद्धं, आहारगाई जहा ओहियाई, वाणमंतरवेउन्चिया असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणि-|
औदारिओसप्पिणीहिं तहेव, खेत्तओ असंखिज्जाओ सेढीओ, सेढीणं विक्खंभसूती, वक्तब्येति वाक्यशेषः, कंठ्या नोक्ता, किं कारणं?,*
कादिशरीरपंचिंदियतिरियोरालियसिद्धत्तणओ, जम्हा महादंडए पंचिंदियतिरियणपुंसपहिंतो असंखिज्जगुणहीणा वाणमंतरा पढिज्जंति, एवं
खरूपम् ॥ विक्खंभसूतीवि तेसिं तेहिंतो असंखिज्जगुणहीणा चेव भाणियब्वा, इदाणी पलिभागो संखेज्जजोयणसतवग्गपलिभागो पयरस्स, जं संखिज्जजोयणसतवग्गमित्ते पलिभागे एकेके घाणमंतरे उविज्जते पतर पूरिज्जति, तम्मत्तपलिभागो ण चेव अवहीरंति, 'जोह-14 सियाण' इत्यादि, जोइसियाणं बेउम्विया बद्धेल्लया असंखिजा, असंखिज्जाहिं उस्सप्पिणिभोसप्पिणीहि अवहीरंति कालतो, खित्तओ असंखिज्जाओ सेढीओ पयरस्स असंखिज्जाभागोत्ति तहेव विसेसो, तेसिं णं सेढीणं विक्खंभसई, वक्तव्येति शेष :, कण्ठया |" [न किंचातः] भूयते, जम्हा वाणमंतरेहिंतो जोइसिया संखिज्जगुणा पढिज्जंति, तम्हा विक्खभसूई वि तेसिं तेहितो संखिज्ज-|* गुणा चेव भवति, णवर पलिभागविसेसो, जहा विछप्पण्णंगुल सयवग्गपलिभागो पयरस्स, पयरए पलिभागे ठबिज्जमाणे एकेको जोइसिओ सब्ब पयरं पूरिज्जति, तहेव सोहिज्जर वि, जोइसियाणं वाणमंतरेहितो संखेज्जगुणहीणो पलिभागो संखिज्जगुणाभहिया सूई। 'बेमाणिय' इत्यादि, वेमाणियाणं वेउब्बिया बद्धल्लया असंखेज्जा कालो तहेव, खेतो असंखिज्जाओ सेढीओ ताओ|* णं सेढीओ पयरस्स असंखिज्जहभागो, तासि णं सेढीणं विक्खंभसूई अंगुलबितियवग्गमूलं ततियवग्गमूलपडप्पणं, अहया|M भंगुलततियवग्गमूलघणप्पमाणमेत्ताओ सेढीओ तहेव, अंगुलविक्खंभखेत्तवत्तिणो सेढीरासिस्स पढम बग्गमूलं वितिय ततियं || चउत्थं जाव असंखिज्जाइत्ति, तेसिपि अं वितियं बग्गमूलं ततियवग्गमूलसेढिप्पदेसरासिणा गुणिज्जति, गुणिए जं होति ततियाओ* ॥१२॥ सेढीओ विक्खंभई भवति, ततियस्स वा बग्गमूलस्स जो घणो पवइयाओ सेढीओ विक्वंभसई, णिदरिसणं तहेव, बेछप्पण्ण

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