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परम ज्योति निपाइओ. ७ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परम पद स्थित जयकरं; गिरिराज सेवा करण तत्पर, पद्मविजय सुविहित करं. ८
(46) श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, दीठे दुर्गति वारे; भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे. १ अनंत सिद्धनो ओह ठाम, सकल तीरथनो राय; पूर्व नवाणुं ऋषभदेव, ज्यां ठवीया प्रभु पाय. २ सुरज कुंड सोहामणो, कवड जक्ष अभिराम; नाभिराया कुल मंडणो, जिनवर करुं प्रणाम. ३
(47) सिद्धाचल शिखरे चढी, ध्यान धरो जगदीश; मन वच काय अकाग्रशुं, नाम जपो अकवीश. १ शत्रुजयगिरि वंदीओ, बाहुबली शिव ठाम; मरुदेव ने पुंडरीकगरि, रैवतगिरि विशराम. २ विपलाचल सिद्धराजजी, नाम भगीरथ सार; सिद्धक्षेत्र ने सहस्रकमल, मुक्ति निलय जयकार. ३ सिद्धाचल शतकूटगिरि, ढंकण कोडि निवास; कदंबगिरि लोहित नमो, ताल ध्वज पुण्य राश. ४ महाबल ने दृढशक्ति सही, अम अकवीश नाम; साते शुद्धि समाचरी, करीओ नित्य प्रणाम. ५ ग्ध शून्यने अविधि दोष, अति परिणति जेह; चार दोष छंडी भजो, भक्ति भाव गुण गेह. ६ मनुष्य जन्म पामी करी, सद्गुरु तीरथ योग; श्री शुभवीरने शासने, शिव रमणी संयोग. ७
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श्री सिद्धाचल तीर्थनायक, विधतारक जाणीये; अकलंक शक्ति अनंत सुरगिरि, विधानंद वखाणीये; मेरु महीधर हस्त गिरिवर, चर्च गिरिधर चिन्ह ओ, श्वासमां सो वार वंदु, नमो गिरि गुणवंत ओ. १ हसित वदने हेमगिरिने, पूजीओ पावन थइ, पुंडरिक पर्वतराज शतकुट, नमत अंग आवे नहीं; प्रीति मंडण कर्म छंडण, शाश्वतो सुरकंदओ. श्वासमां. २ आनंद घर पुन्यकंद सुंदर, मुक्ति राजे मन वस्यो, विजय भद्र सुभद्र नामे, अचल देखत दिल वस्यो, पाताल मूलने ढंक पर्वत, पुष्पदंत जयंत हे. धासमां. ३ बाहुबल मरुदेवी भगीरथ, सिद्धक्षेत्र कंचनगिरि; लोहिताक्ष कुलिनी वासमां जस,