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आगम ध्याइओ. ३ दोय दिशि बालक होय जेहने, सदा भवियण सुखकरूं, दुःख हरि अंबालुंब सुंदर, दुरित दोहग अपहरु; गिरनार मंडण नेमि जिनवर चरण पंकज सेविये, श्री संघ सुप्रसन्न मंगल, करो ते अंबा देविओ. ४
(85) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री गिरनारे जे गुण नीलो, ते तरण तारण त्रिभुवन तिलो; नेमिसर नमीये ते सदा, सेव्याथी आपे संपदा. १ इंद्रादिक देव जेहने नमे, दर्शन दीठे दुःख उपशमे; जे अतित अनागत वर्तमान, जे जिनवर वंदू वर प्रधान. २ अरिहंते वाणी उच्चरी, गणधरे ते रचना करी; पिस्तालीश आगम जाणीये, अर्थ तेना चित्त आणिये. ३ गढ गिरनारनी अधिष्ठायिका, जिनशासननी रखवालिका; समरु सा देवी अंबीका, कवि उदयरत्न सुखदायिका. ४
(86) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति नेमि जिनेश्वर, प्रभु परमेसर, वंदो मन उल्लासजी, श्रावण शुदि पंचमी दिने जन्म्या, हुओ त्रिजग प्रकाशजी; जन्म महोत्सव करवा सुरपति, पांच रुप करी आवेजी, मेरु शिखर पर ओच्छव करीने, विबुध सयल सुख पावेजी. १ श्री शत्रुजय गिरनार वंदु, कंचनगिरि वैभारजी, समेतशिखर अष्टापद आबु, तारंगगिरिने जुहारोजी; श्री फलवर्द्धि पास मंडोवर, शंखेश्वर प्रभु देवजी, सयल तीरथनुं ध्यान धरीजे, अहनिश कीजे सेवजी २ वरदत्तने गुणमंजरी प्रबंधे, नेमि जिणेसर दाख्योजी, पंचमी तप करतां सुख पाम्या, सूत्र सकलमां भाख्योजी; नमो नाणस्स इम गणणुं गणिये, विधि सहित तप कीजेजी, उलट धरी उजमणुं करतां, पंचमी मति सुख लीजेजी. ३ पंचमीनुं तप जे नर करशे, सानिध्य करशे अंबाईजी; दोलत दाई अधिक सवाई, देवी द्यो ठकुराईजी; तपगच्छ अंबर दिनकर सरखो, श्री विजयसिंहसूरीशजी, वीर विजय पंडीत कविराजा, विबुद्ध सदा सुजगीशजी. ४
(87) श्री नेमिनाथ जिन स्तुति श्री गिरनार शिखर शणगार, राजमति हैयानो हार, जिनवर नेमकुमार;