Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria
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कुशल कोटी कल्याणकंदं; ॥१॥ मुनिमन रंजणो, सयल दुःख भंजणो, वीर वर्धमान जिणंदो; मुगति गति जिम लही, तिम कहु सुण सही, जिम होओ हर्ष हइडे आणंदो. मु० ॥२॥ करीय उद्घोषणा; देशपुर पाटणे, मेघ जिम दान जल बहुल वरसी; धण कणग मोतीया, झगमगे जोतिया, जिन देइ दान इम ओक वरसी. मु० ॥३॥ दोयविण तोय उपवास आदे करी, मागशिर कृष्ण दशमी दहाडे; सिद्धि सामा थइ, वीर दीक्षा लेइ, पाप संताप मल दूर टाले. मु० ॥४॥ बहुल बंभण घरे, पारj सामीओ, पुण्य परमान्न मध्यान्ह किधुं; भुवन गुरु पारणां, पुन्यथी बंभणे, आप अवतार फल सयल लीधुं. मु० ॥५॥ कर्म चंडाल गोशाल संगम शुरो, जीणे जिन उपरे घात मांड्यो; ओवडो वयर ते पापीया शे कर्यो, कर्म कोटी तुही ज सबल दंड्यो. मु० ॥६॥ सहज गुण रोषीयो, नामे चंडकोशियो, जिनपदे श्वानजिम जेह विलगो; तेहने बुझवी उद्धर्यो जगपति, किधलो पापथी अतिहि अलगो. मु० ॥७॥ वेदयामा त्रीयामा लगे खेदीयो, भेदीयो तुज नवी ध्यान कुंभो; शूलपाणी अनाणी अहो बुझव्यो, तुज कृपा पारपामे न शंभो. मु० ॥८॥ संगमे पीडीयो प्रभु सजल लोयणे, चिंतवे छुटस्यें किम अहो; तास उपरे दया अवडी शी करी, सापराधे जने सबल नेहो. मु० ॥६॥ इम उपसर्ग सहेतां, तरणि मीत वरस, सार्ध उपर अधिक पक्ष अके; वीर केवल लडं कर्म दुःख सवीदह्यु, गहगर्दा सुर निकर नर अनेके. मु० ॥१०॥ इंद्रभूति प्रमुख सहस चउदशमुनि, साहुणी सहस छत्रीस विहसी; ओगणसाठ सहस ओक लाख श्रद्धालुआ, श्राविका त्रिलख अढार सहसी. मु० ॥११॥ इम अखिल साधु परिवारशुं परिवर्यो, जलधि जंगम जीस्यो गुहिर गाजे; विचरता देश परदेश निय देशना, उपदिशे सयल संदेह भांजे, मु० ॥१२॥ ___ (ढा. २) (राग :--शांति सुहंकर साहिबो संयम अवधारे) श्रावक सिंधुर सारिखा, जिनमतना रागी; त्यागी सह गुरु देव धर्म, तत्त्वे मती जागी; विनय विवेक विचार वंत, प्रवचन गुण पुरा; अहवा श्रावक होयसे, मतिमंत सनुरा. ॥२६।। लालचे लागा थोडीले, सुखे राचि रहिया; घरवासे आशा अमर, परमारथ दुहिया; व्रत वैराग्य थकी नही, कोइ लेशे प्राये; गज सुपने फल ओह नेह नवि मांहो मांहे. ॥३०॥ वानर चंचल चपल जाति, सरखा मुनि

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