Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 613
________________ 564 योग रे; अहोनिश चाहे सिद्धता, विरही इष्ट संयोग रे...नमो०... ॥६-१६।। आतमराम रमापति, समरे किरिया असंग रे; तो लहे सिद्धदशा भली, श्री जिन अमीय सुरंग रे...नमो०... ॥७१७।। __(ढा. ३) माझं मन मोहयुं रे सुरिगुण गायवारे, वर छत्रीश प्रधान; भुवन पदारथ प्रगट प्रकाशतारे, दीपक जेम निधान...मा०..॥१-१८|| मल कोपादिकनी नहि कलुषतारे; न धरे मायानो लेश; गुणीजन मोहन बोधन भव्यनेरे; भाखे शुद्ध उपदेश०...मा०..॥२-१६॥ पंचाचार ते सुधा पाळतारे, नहि परमाद लगार; सारण वारण चोयण साधुनेरे, आपे नित्य संभार०...मा०..॥३-२०॥ आतम साधन पंच प्रस्थाननारे, ध्यानमालामां विस्तार; तेहीज रीते प्रीते साधतारे, धन्य तेहनो अवतार०...मा०..।।४२१॥ अहवा गुरुनी सेवा तुम करोरे, गौतम विर जिणंद, असनवसनादिक भक्ति कीजीये रे, ओ व्यवहार अमंद०...मा०..॥५-२२॥ जिनवर कहे वंदो तुम प्राणियारे, आचारज गुणवंत; आतम भावे परिणती जो लहेरे, अमृत पदवी लहंत०...मा०..॥६-२३।। (ढा. ४) (राग : मेरा जीवन कोरा कागज) द्वादश अंगना धारका, पारग सयल सिद्धांत रे, कारक सुत्र समरथ भला, वारक अहितनी वात रे०..द्वादश० ॥१-२४॥ बावना चंदनरस भरे, वरसता वाणी कल्लोल रे; बोधिबीज दीये भव्यने, धरमशं करे रंगरोल रे०..द्वादश० ॥२-२५।। राजपुत्र जिम गुणचिंतका आचारज संपत्ति योग रे; त्रीजे भवे लहे शिवसंपदा, नमो पाठक शुभ योग रे०..द्वादश० ॥३-२६॥ शब्द शास्त्रे अम सूचवे, शब्द अर्थ परिणाम रे; भणे भणावे तेह पाठका, अवर ते नाम निदान रे०..द्वादश० ॥४-२७।। शिष्यने सुहित शिक्षा दिये, पावन जिम शुभ घाट रे; मूर्खने पण पंडित करे, नमुं पाठक महाराज रे०..द्वादश० ॥५-२८।। शासन जैन अजुवालता, पालता आप परतीत रे; आतम परिणति ते लहे, अमृत अह पदप्रीत रे०..द्वादश० ॥६-२६॥ (ढा. ५) (राग : जीवनना महासागरनां) इंद्रिय जीपेरे मन संयम धरे, चरण करण गुण ज्ञान; बाह्यचरणेरे देखी न राचीये, भगवती सूत्र प्रमाण रे, ते मुनि वंदो रे शुभ समता धरा०..॥१-३०॥ वस्त्र न धोवे रे रंगे नहि

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