Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

View full book text
Previous | Next

Page 632
________________ 583 निकालो रे, सदगुरु आज्ञा शिर धरी, हुओ राय श्रीपालो रे. नव० (६) देश देशान्तर भमी करी, आयो ते वर चंगे रे, नव राणी परण्यो भली, राज्य पाम्यो मन रंग रे. नव० (१०) तप पसाय सुख संपदा, प्रत्यक्ष स्वर्गे पहोंच्यो रे, उपसर्ग सवि दुरे टल्या, पाम्या सुख अनंतो रे. नव० (११) तपगच्छ दिनकर उगीयो, श्री विजयसेन सूरिंदो रे, तास शिष्य विमल ओम विनवे, सती नामे आणं दोरे, नवपद महिमा सांभळो० (१२) (दिवालि कल्प स्तवननी अपूर्ण बीजी-त्रीजी ढाल) (ढाल बीजी) हवे निय आय अंतिमसमे, जाणिय श्री जिनराय रे; नयरी अपापाए आवीया, राय समाजने ठाय रे; हस्ति पालग राये दीठला, आ वियडा आंगण बार रे; नयन कमल दोय विकसीआ, हरसीला हइडा मझार रे॥१३॥ भले भले प्रभुजी पधारीया, नयन पावन कीधां रे; जनम सफल आज अम तणो, अम्ह घर पाउलां दीधा रे; राय राणी जिन प्रणमीया, मोटे मोतीयडे वधावी रे; जिन सनमुख कर जोडीय, बेठला आगले आवी रे॥१४॥ धन अवतार अमारडो, धन दिन आजुनो जेहो रे; सुरतरु आंगणे मोरीयो, मोतियडे वूठलो मेहो रे, आ श्युं अमारडे एवडो, पुरव पुन्यनो नेहो रे; हैडलो हेजे हरसिओ, जो जिन मलिओ संजोगो रे ।।१५।। अति आदर अवधारिए, चरम चोमासु रहीया रे; राय राणी सुरनर सवे, हियडला मांहे गहगहिया रे; अमृतथी अति मीठडी, सांभली देशना जिननी रे; पाप संताप परो थयो, शाता थई तन मननी रे॥१६॥ इंद्र आवे आवे चंद्रमां, आवे नरनारीना वृंदरे; त्रण प्रदक्षिणादेइ करी, नाटिक नव नवे छंदो रे; जिनमुख वयणनी गोठडी, तिहां होये अति घणी मीठी रे; ते नर तेहज वरणवे, जीणे निज नयणले दीठी रे ॥१७॥ इम आणंदे अतिक्रम्या, श्रावण भादरवो आसो रे, कार्तिक कोडीलो अनुक्रमे, आवीयडो कार्तिक मासो रे; पाखी पर्व पन्होतो, पोहतलुं पुन्य प्रवाहि रे, राय अढार तिहां मिल्यां, पोसह लेवां उछांहि रे॥१८॥ त्रिभोवन जन सवि तिहां मिल्यां, श्री जिनवंदन कामो रे; सहेज संकिरण तिहां थयो, तिल पडवा नहि ठामो रे; गोयम स्वामी समोवडी, स्वामी सुधर्मा तिहां बेठा रे; धन धन ते जिणे आपणे, लोयणे जिनवर दिठा रे॥१६॥ पूरण पुन्यना औषध, पौषध व्रत

Loading...

Page Navigation
1 ... 630 631 632 633 634