Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 605
________________ 556 तिहां किणे नवि प्रतिबोध्यो. रे ॥१०७।। ते मुनि शुं कहे बंडो रे, मुज धरती सवी छंडो रे; विनवीयो मुनि मोटो रे, नवी माने कर्मे खोटे. ॥१०८॥ साठसया वरसे तप तपिओ रे, जे जिन किरीआनो खपीओ रे, नामे विष्णुकुमार रे, सयल लब्धिनो भंडार रे. ॥१०६॥ उठ क्रम भूमि लेवा रे, जोवा भाईनी सेवा रे, लीधं त्रिपदी भूमि दान रे, भले भले आव्या भगवान रे; ॥११०॥ इंदो वयणे धडहडीयो रे, ते मुनि बहु कोपे चढीओ रे; किधो अद्भूत रुप रे, जोयण लाख सरुपरे. ॥१११॥ प्रथम पग चरण पूर्वे दीधो रे, बीजो पश्चिमे दीधो रे, त्रीजो तस पूंठे थाप्यो रे, नमुची पाताले चांप्यो रे, ॥११२॥ थरहरियो त्रिभुवन रे, खल भलीओ सवी जन; रे सल सलियो सुर दिन्न रे, पडयो नवि सांभलीये कन्नरे. ॥११३। ओ उत्पात अत्यंत रे, दूरि करो भगवंत रे; है है श्युं हवे थाशे रे, बोले बहु ओक सासे रे, ॥११४॥ करणे किन्नर देवा रे, कडुआ क्रोध समेवा रे, मधुर मधुर गाओ गीत रे, बे कर जोडी विनीत रे, ॥११५॥ विनय थकी वेगे वलियो रे, श्री जिन शासन बलिओ रे, दानव देवे खमाव्यो रे, नर नारीओ वधाव्यो रे ॥११६।। गावलडी भेंस भडकी रे, जे देखी दूरे तडकी रे; जे जतने ग्रही छे रे, आरति उतारी मेरईओ लयुं ओ. ॥११७।। नवले अवतारे आव्या रे, जीवीत फल लही फाव्यारे, शेव सुंहाली कंसार रे, फल लघु नवे अवतार रे. ॥११८।। छगण तणो घरबार रे, नमुची लख्यं घरनारे; ते जीम जीम खेरु थाय रे, तिम तिम दुःख दूरे जाय रे. ।।११६॥ मंदिर मंडाण मांड्यो रे, दालिद्र दुःख दूरे छांड्या रे; कार्तिक सुदि पडवे परवे रे, इम मे आदरीओ सर्वे रे, ॥१२०।। पुण्ये नरभव पामी रे, धर्म पुन्ये करो निरधामी रे; पुन्य ऋद्धि रसाली रे, नित नित पुन्ये दिवाली. ॥१२१॥ (कलश) जिन तुं निरंजण सकल रंजण, दुःख भंजन देवता, द्यो सुख सामि, मुगति गामी, वीर तुज पाये सेवता; तप गच्छ गयण दिणंद दह दिसे, दिपतो जग जाणीओ, श्री हीर विजय सुरिंद सद्गुरु, तास पाट वखाणिजे. ॥१२२॥ श्री विजय सेन सूरीश सद्गुरु, विजय देव सूरीसरु, जे जपे अहनिश नाम जेहनो, वर्धमान जिनेश्वरु; निर्वाण स्तवन महिमा भवन, वीर जिननो जे भणे; जे लहे लीला लब्धि लच्छि, श्री गुण हर्ष वधामणे. ॥१२३।।

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