Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 606
________________ 557 (60) दिवाळीना देववंदन (प्रथम चैत्यवंदन) वीर जिनवर वीर जिनवर, चरम चौमास; नयरी अपापाये आवीया, हस्तिपाल राजन सभाये, कार्तिकवदी अमावस्या रयणीये; मुर्हतशेष निर्वाण ताहि सोल पहोर देइ देशना, पहोत्या मुक्ति मोझार; नित्य दिवाली नय कहे, मलीया नृपति अढार. ।।१।। (द्वितिय चैत्यवंदन) देव मलीया देव मलीया, करे उत्सव रंग; मेरइयां हाथे ग्रही, द्रव्य तेज उद्योत कीधो, भाव उद्योत जिनेंद्रने, ठाम ठाम अह ओच्छव प्रसिद्धो, लख कोडी छठ्ठ फल करी, कल्याणकरो अह; कवि नयविमल कहे इश्युं, धनधन दहाडो तेह.॥२॥ (प्रथम वीर स्तुति) मनोहर मूर्ति महावीर तणी, जिणे सोल पहोर देशना पभणी; नव मल्ली नव लच्छी नृपति सुणी, कही शिव पाम्या त्रिभुवन धणी. ॥१॥ शिव पहोत्या ऋषभ चउदश भक्ते, बावीश लह्या शिवमास थिते; छठटे शिव पाम्या वीर वली, कार्तिक वदी अमावस्या निरमली. ॥२॥ आगामी भावे भाव कह्यां, दिवाली कल्पे जेह लह्या; पुण्य पाप फल अज्झयणे कयां, सवि तहत्ति करीने सद्ह्यां. ॥३॥ सवि देव मली उद्योत करे, प्रभाते गौतम ज्ञान वरे; ज्ञानविमल सदा गुण विस्तरे. जिन शासनमां जयकार करे. ॥४॥ (दितिय वीर स्तुति) जय जय भविहितकर, वीर जिनेश्वर देव; सुरनरना नायक, जेहनी सारे सेव; करुणा रस कंदो, वंदो आणंद आणी; त्रिशला सुत सुंदर, गुण मणी केरो खाणी. ।१॥ जस पंच कल्याणक, दिवस विशेष सुहावे; पण थावर. नारक, तेहने पण सुख थावे; ते च्यवन जन्म व्रत, नाण अने निर्वाण, सवि जिनवर केरां, ओ पांचे अहिठाण. ॥२॥ जिहां पंच समिति युत; पंच महाव्रत सार; तेहमां प्रकाश्या, वली पांचे व्यवहार; परमेष्ठी अरिहंत, नाथ सर्वज्ञने पार; अह पंच पदे लह्यो, आगम अर्थ उदार. ॥३॥ मातंग सिद्धाइ, देवी जिनपद सेवी, दुःख दुरित उपद्रव, जे टाले नित्य मेवी; शासन सुखदायी, आइ सुणो अरदास; श्री ज्ञान विमल गुण, पुरो वांछित आश. ॥४।।

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