Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria
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(श्री महावीर जिन स्तवन) श्री महावीर मनोहरु, प्रणमुं शिर नामी; कंथ जशोदा नारीनो, जिन शिवगति गामी. ।।१।। भगिनी जास सुंदसणा, नंदी वर्धन भाई, हरि लंछन हेजालुओ, सहु कोने सुखदायी. ॥२॥ सिद्धार्थ भूपति तणो, सुत सुंदर सोहे; नंदन त्रिशला देवीनो, त्रिभुवन मन मोहे. ॥३॥ अक शतदश अध्ययन जे, प्रभु आप प्रकाशे; पुण्य पाप फल केरडां, सुणे भविक उल्लासें. ॥४॥ उत्तराध्ययन छत्रीश जे, कहे अर्थ उदार; सोल पहोर दीये देशना, करे भविक उपगार. ॥५॥ सर्वार्थ सिद्ध मुहर्तमां, पाछली जे रयणी; योग निरोध करे तिहां, शिवनी निसरणी. ॥६॥ स्वाती नक्षत्र चंद्रमा, जोगे शुभ आवे; अजरामर पद पामीया, जय जय रव थावे. ॥७॥ चोसठ सुरपति आवीयां, जिन अंग पखाली; कल्याणक विधि साचवी, प्रगटी दिवाली. ॥॥ लाख कोडी फल पामीये, जिन ध्याने रहीये; धीर विमल कविराजनो, ज्ञान विमल कहीये. ।।६।।
(तृतीय चैत्यवंदन) श्री सिद्धार्थ नृप कुल तिलो, त्रिशला जस मात; हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात; ॥१॥ त्रीश वरस गृहवास छंडी, लही संयम भार; बार वरस छद्मस्थ मान, लही केवल सार; ॥२॥ त्रीश वरस ओम सवि मली अ, बहोतेर आयु प्रमाण; दिवाली दीन शिव गया, कहे नय तेह गुण खाण. ॥३॥
(61) गौतम स्वामीना देव वंदन बीजो जोडो--(प्रथम चैत्यवंदन) नमो गणधर नमो गणधर, लब्धि भंडार; इंद्रभूति महिमानिलो, वड वजीर महावीर केरो, गौतम गोत्रे उपन्यो गणि अग्यार मांहे वडेरो, केवलज्ञान लडं जिणे, दिवाली परभात; ज्ञान विमल कहे जेहना, नाम थकी सुख शात. ॥१।।
(द्वितीय चैत्यवंदन) इंद्रभूति पहिलो भए॒, गौतम जस नाम; गोबर गामे उपन्या, विद्याना धाम. ।।१।। पंच सया परिवारशुं, लेइ संयम भार; वरस पचास गृहे वस्यां, व्रते वर्षज त्रीस. ॥२॥ बार वरस केवल वर्या मे, बाणुं वरस सवि आय; नय कहे गौतम नामथी, नित्य नित्य नवनिधि थाय. ॥३॥

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