Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 609
________________ 560 आप तार्यो, त्रिपदी पामी गुंथीया, पूरव चउद उदार, नय कहे गौतम नामथी, होवे जय जयकार ॥२॥ (62) दीवाळी मां रात नां गणवानो जाप (१) ॐ ह्रीँ श्री महावीर स्वामि सर्वज्ञाय नमः। रातना बार वाग्या पहला नव-दस वाग्या सुधी २० माळा गणवी० (२) ॐ ह्रीँ श्री महावीर स्वामि पारंगताय नमः। रातना बार वागे पछी एक-डोढ वागे २० माळा गणवी० (३) ॐ ह्रीं श्रीं गौतमस्वामि सर्वज्ञाय नमः। रातना बार वाग्या पछी चार पांच वागे २० माळा गणवी० श्री सिद्धचक्र ढाल विभाग (63) श्री सिद्धचक्र स्तवन (अजित जिणंदशुं प्रीतडी अ-राग) श्री सिद्धचक्र आराधिओ, जिम पामो हो भवि कोड कल्याण के; श्री श्री पालतणी परे, सुख पामो हो लही निर्मळ मन्न के, श्री सिद्धचक्र आराधिये. ॥१॥ नवपद ध्यान धरो सदा, चोखे चित्ते हो लही बहु भाव के; विधि आराधन साचवो, जिम जगमां हो होय जशनो जवाब के. श्री सिद्धचक्र० ॥२॥ केसर चंदन कुसुमशुं, पूजीजे हो उवेखी धूप के; कुंदरूं अगरु ने अगरजा, तपदिनतां हो तप कीजे, घृतदिप ॥३॥ आसो चैत्र शुक्ल पक्षे, नव दिवसे हो, तप कीजे अह के, सहज सोभागी सुसंपदा, सोवन सम हो झलके तस देह के. श्री सिद्धचक्र० ॥४॥ जावज्जीव शक्ते करो, जिम पामो हो नित्य नवला भोग के; साडा चार वरस तथा, जिनशासन हो ओ मोटा योग के. श्री सिद्धचक्र० ॥५॥ विमळदेव सान्निध्य करे, चक्रेश्वरी हो करे तास सहाय के; श्री जिनशासन सोहीजे, ओह करतां हो अविचळ सुख थाय के. श्री सिद्धचक्र० ॥६॥ मंत्र तंत्र मणि, औषधि, वश करवा हो शिवरमणी काज के, त्रिभुवन तिलक समोवडे, होय ते नर हो कहे नयकविराजके श्री सिद्धचक्र० ॥७॥

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