Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria
View full book text
________________
538
यदि चोयने समेत
He
उत्सव सार. प्रभु० ॥२॥ देहमान नव हाथर्नु, सु० नील वरण मनोहार; प्रभु० अनुक्रमे जोबन पामीया, सु० परणी प्रभावती नार. प्रभु० ॥३।। कमठ तणो मद गालीयो, सु० काढ्यो जलतो नाग; प्रभु० नवकार सुणावी ते कीयो, सु० धरण राय महाभाग. प्रभु० ॥४॥ पोष वदि अकादशी, सु० व्रत लेइ विचरे स्वाम; प्रभु० वडतलें काउस्सग्गे रह्यां, सुख० मेघमाली सुर ताम. प्रभु० ॥५॥ करे उपसर्ग जलवृष्टिनो, सुख० आव्युं नासिका नीर; प्रभु० चूकया नहीं प्रभु ध्यानथी, सु० समरथ साहस धीर प्रभु० ॥६।। चैत्र वदि चोथने दिने, सु० पाम्या केवल नाण; प्रभु० चउविह संघ थापी करी, सु० आव्या समेत गिरि ठाण. प्रभु० ॥७॥ पाली आयु सो वर्षमुं, सु० पहोंता मुक्ति महंत; प्रभु० श्रावण शुदि दिन अष्टमी, सु० किधो कर्मनी
अंत. प्रभु० ॥८॥ पास वीरने आंतरं, सु० वर्ष अढीशे जाण; प्रभु० कहे माणेक जिनदासने सु० कीजे कोटी कल्याण. प्रभु० ॥६॥ (47) सातमुं व्याख्यान सज्झाय (राग : अमी भरेली नजरू राखो) ___ सौरीपुर समुद्र विजय घरे, शिवादेवी कुखे सारो रे; कार्तिक वदि बारश दिने, अवतर्या नेम कुमारो रे, जयो जयो जिन बावीशमो. ॥१॥ चौद स्वप्न राणीयें पेखियां, करवो स्वप्न तणो विचार रे; श्रावण शुदि दिन पंचमी, प्रभु जन्म्या हुओ जयकार रे. जयो० ॥२॥ सुरगिरि उत्सव सुर करे, जिनचंद्र कला जिम वाधे रे; अेक दिन रमता रंगमां, हरि आयुध सघला साधे रे. जयो० ॥३॥ खबर सुणी हरि शंकिया, प्रभु लघुवय थकी ब्रह्मचारी रे; बलवंत जाणी जिनने, विवाह मनावे मुरारी रे. जयो० ॥४॥ जान लेइ जादव आग्रहें, जिन आव्या तोरण बार रे; उग्रसेन घर आंगणे, तव सुणीयो पशु पोकार रे. जयो० ॥५।। करुणा निधि रथ फेरव्यो, नवि मान्यो कहेण केहनो रे; राजुलने खटके घj, नव भवनो स्नेह छे जेहनो रे. जयो० ॥६॥ दान देइ संयम लीधो, श्रावण छठ्ठ अजुआली रे; चोपन दिन छद्मस्थ रही, लडं केवल कर्मने गाली रे. जयो० ॥७॥ आसो वदि अमावसें, दे देशना प्रभुजी सारी रे; प्रति बोध पामी व्रत लियो, रहनेमि राजुल नारी रे. जयो० ॥८॥ आषाढ शुदि दिन अष्टमी, प्रभु पाम्या पद निर्वाणो रे; रैवत गिरिवर उपरे, मध्य रात्रिये ते मन आणो रे. जयो० ॥६॥ श्री पार्थनाथ थया पहेला, कयारे नेम थया निरधारो रे; साडा

Page Navigation
1 ... 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634