Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

View full book text
Previous | Next

Page 595
________________ 546 किर्ती विजयजी नामथी रे लाल, मुनि थया भीमासर गाम रे भ० भा०॥१५॥ छेदोपस्थापनाए ते थया रे लाल, कनक विजयजी नाम रे; भ० कच्छमां कनक मणि समा रे लाल, सर्व गुणोना धाम रे भ० भा०॥१६।। अनुक्रमे योग वहन करी रे लाल, आगम वाचना लीध रे; भ० छोत्तेर कार्तिक वद पंचमी रे लाल, पंन्यास पदवी प्रसिद्ध रे भ० भा० ।।१७।। आचार्य सिद्धि सूरिश्वरा रे लाल, श्री सिद्धक्षेत्र मोझार रे; भ० संघ समस्त पदवी दीए रे लाल, वरत्यो जय जय कार रे भ० भा०॥१८॥ पूर्व वृत्तांत प्रमोदथी रे लाल, तेहनी पहेली ढाळ रे; भ० सावधान थइ सांभळो रे लाल, हवे सुंदर सुगुण रसाल रे भ० भा०॥१६॥ (ढाळ २) गीतारथ पद पामीने जी, करता भवि उपकार; पाठक पद पंच्यासीए जी मल्लिनाथ दरबार, सूरिश्वर धन्य धन्य तुम अवतार ।।१।। उज्वळ एकादशी माघनीजी, भोयणी तीर्थ मोझार; उपाध्याय उमंगथी जी, देशना दीये मनोहार सूरी धन्य० ॥२॥ ज्ञान क्रिया उपदेशता जी, मधुर अर्थ सुखकार; भव्य जीवोना हित भणीजी, समजावे धर्मनो सार सूरी० धन्य० ॥३॥ तेह देशना सांभळीजी, दीक्षा केइ भव्य लीध; देशविरति केइ थया जी, समकित केइ प्रसिद्ध सूरी० धन्य०॥४॥ ग्रामानुं ग्राम विचरतां जी, राजनगर पावन कीध; संघ मळी महोत्सव कीयो जी, सूरीपद तिहां दीध सूरी० धन्य०॥५॥ नेव्यासी पोष वद सातमेजी, सिद्धि सूरीश्वर राय; पटधर मेघ सूरीश्वरजी कर्या जी, विजय कनकसूरी राय सूरी० धन्य०॥६।। शम दम रस सायर समाजी, शासनना शणगार रे; जंगम कल्प तरू समाजी, भविजनना आधार सूरी० धन्य०॥७|| शासन प्रभावना बह करेजी, प्रतिष्ठा उपधान; उद्यापन दीक्षा घणीजी, आगम वाचना पान सूरी० धन्य०॥८॥ छरी पालता संघ घणाजी, देशनो को उद्धार; काम कषायने जीतवाजी, निर्मम निरहंकार सूरी० धन्य०॥६॥ अष्ट प्रवचन मातशुंजी, वरस अठ्ठावन जाण; समता भावे आतमाजी, निर्मळ करे गुणखाण सूरी० धन्य०॥१०॥ संवत बे हजार थीजी, ओगणीश उपर थाय; श्रावण वद शुभ चोथनेजी, पन्नर धर कहेवाय सूरी० धन्य० ॥११॥ कच्छ वागड भूषण समोजी, भचाउ नामे गाम; शुक्रवारे सिधावीयाजी, सूरीश्वर सूरधाम सूरी० धन्य० ॥१२॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634