Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 591
________________ 542 महोत्सव अह रे; बोले कामेति शेठीया, हजरत सुनिई सनेह रे. थे० ॥३।। रोजा धरीया छ मासनां, बाई चंपादे मात रे; तेहनो फुलेको अह छे, ओ सहु रोजा इतमाम रे. थे० ॥४॥ अकबर शाह सुणी बोलीयो, ओह मे अधिकाई कांई रे; बालक नाना रोजा धरे, महिना रमजान मांही रे. थे० ॥५।। बोले कामेती शेठीया, उन्हा पाणी उपवास रे; अहवा रोजा छे अहना, अन्न न लेवु छ मास रे. थे० ॥६॥ चमकयो अकबर सांभळी, आव्यो चंपादे पास रे; देख्यो दुरबल देहने, पूछे अकबर तास रे. थें० ॥७॥ बोले चंपादे मावडी, देवगुरु धर्म पसाय रे; रोजा धरीया रे साहिबा, ते सहु तेहने सुपसाय रे. थें० ॥८॥ ते गुरु शहेर गंधार छे, सपरिवार चौमास रे; निसुणी अकबर रीझीयो, हुवो मलवा उल्लास रे. थें० ॥६॥ अकबर फरमान मोकले, हिरजी वांचीने जोय रे; वहेला आज्यों गच्छरायजी, विलंब न कीजे कोय रे. थे० ।।१०।। कार्तिक चोमासुं उतरे, सूरि हीर निग्रंथ रे; सहु परिवार शुं पांगर्या, चलीया दील्हीने पंथ रे. थे० ॥११॥ दूर देशांतर जाणीने, राजनगर शुभ ठाम रे; पट्टधर थाप्यो रे प्रेमशुं, सेन सूरि वड नाम रे. थें० ।।१२।। पालनपुरनी आगले, रोह सरोत्तरा गाम रे; ठाकोर आहेडे आवीयो, अहने बोल्यो गुण धाम रे. थे० ॥१३॥ अणीपरे पंथे रे आवता, करतां भवि उपगार रे; आग्रा नयर पधारीया, वंदे बहु नरनार रे. थे० ॥१४॥ मालम हुइ पात शाह ने, हुओ उलसित अंग रे; संवत गुण च्याल में, जेठ वदि तेरस रंग रे. थें० ॥१५॥ परीक्षा जोवाने कारणे, भूमि खाणी तेह मांही रे; बकरी घाली रे जीवती, उपर आसन थाय रे. थे० ॥१६॥ गुरुने मलवा बोलावीया, दीधो गुरु उपयोग रे; ओ आसन नही अम कामनो, माहे सचित्त संजोग रे. थे० ॥१७|| अ आसन तले मोटका, तिन पंचेन्द्रिय जीव रे; अकबर मन मांही चिंतवे, पुरा समजु नहि सोय रे. थें० ॥१८॥ चिंतवी भोयरुं उघाडीयुं, बकरी जोवाने काज रे; बालक दोय ने मावडी, दीठो त्रणेनो साज रे. थें० ॥१६॥ अकबर शाह मन चिंतवे, प्रत्यक्ष परवरदिगार रे; प्रणमें पद गच्छरायनां, धर्म श्रवण मन धार रे. थें० ॥२०।। ओक प्रहर लगे शाहने, उपदेशे सूरिराय रे; हिंसा पातिक सांभली, परिणती कुणेरी थाय रे. थें ॥२१॥ अरज करे सुलतानजी, निस्पृह थे सूरिराय रे; धन मणी कंचन ल्यो नही, मुज प्रार्थन कुण काज रे. थे० ॥२२॥ पुस्तक तुम चारे

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