Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria
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520 करी निया| मुनि अणसणी; सत्तरमे महाशुक्रे सुरा, श्री शुभवीर सागर सत्तरा. ॥१०॥
(ढा. ४) अढारमे भव सात, सुपन सूचित सती; पोतन पुरीय प्रजापति, राणी मृगावती; तस सुत नामे त्रिपृष्ठ, वासुदेव निपन्या; पाप घणुं करी, सातमी नरके उपन्या. ॥१॥ वीशमे भव थइ सिंह, चोथी नरके गया; तिहाथी चवी संसारे, भव बहुला थया; बावीशमे नर भव लही, पुण्य दशा वर्या, त्रेवीशमे राज्यधानी, मूकाओ संचर्या. ॥२॥ राय धनंजय धारणी, राणीये जनमीया; लाख चोराशी पूर्व आयु जीविया; प्रियमित्र नामे चक्रवर्ति दीक्षा लही; कोडी वरस चारित्र दशा पाळी सही. ॥३॥ महाशुक्रे थइ देव, इणे भरते च्यवी; छत्रिका नगरीये, जितशत्रु राजवी; भद्रा माय राजा लखपचवीश, वरस स्थिति धरी; नंदन नामे पुत्रे, दीक्षा आचरी. ॥४॥ अगीयार लाख ने अंशी हजार छस्से वळी, उपर पिस्तालीश अधिक पण मन रुळी; वीश स्थानक मास खमणे, जावज्जीव साधता; तीर्थंकर नामकर्म, तिहां निकाचता. ॥५।। लाख वरस दीक्षा, पर्याय ते पाळता; छवीशमे भव, प्राणत कल्पे देवता, सागर वीश- जिवीत सुखभर भोगवे; श्री शुभवीर जिनेवर, भव सुणजो हवे. ॥६॥
(ढा. ५) (राग :--अंधारानो दीवडोने) नयर माहणकुंडमां वसे रे, महारुद्धि ऋषभदत्त नाम; देवानंदा द्विज श्राविका रे, पेटे लीधो प्रभु विसराम रे; पेट लीधो प्रभु विसराम. ॥१॥ ब्याशी दिवसने अंतरे रे, सुर हरिण गमेषी आय; सिद्धारथ राजा घरे रे, त्रिशला कूखे छटकाय रे. त्रि० ॥२।। नव मासांतरे जनमिया रे, देव देवीये ओच्छव कीध; परणी यशोदा यौवने रे, नामे महावीर प्रसिद्ध रे. ना. ॥३॥ संसार लीला भोगवी रे, त्रीश वर्षे दीक्षा लीध; बार वरसे हुआ केवळी रे, शिव वहुनुं तिलक शिर दीध रे. शि० ॥४॥ संघ चतुर्विघ थापीयो रे, देवानंदा रुषभदत्त प्यार; संयम देइ शिव मोकल्या रे, भगवति सूत्रे अधिकार रे. भ० ॥५॥ चोत्रिश अतिशय शोभता रे, साथे चउद सहस अणगार; छत्रीस. सहस ते साधवी रे, बीजो देवदेवी परिवार रे. बी० ॥६॥ त्रीश वरस प्रभु केवली रे, गाम नगर ते पावन कीध; बहोतेर वरस, आउखुं रे, दीवाळीये शिवपद लीध रे. दी०

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