Book Title: Prachin Chaityavandan Stuti Stavan Parvtithi Dhalo
Author(s): Dinmanishreeji
Publisher: Dhanesh Pukhrajji Sakaria

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Page 574
________________ 525 तस पट्टराणी तेह खाणी, नामे त्रिशला गुणवती. ॥७॥ चाल० : तिहां जइ गर्भने पालटो, ओ तुमने छे आदेशजी; कोई काले अम नथी बन्युं, द्विज कुल होय जिनेशजी. |८| त्रोटक : द्विज कुले न होय जिनपति वली, ओह अचरिजनी कथा; लवणमां जिम अमृत लहरी, मरुमां सुरतरु यथा; ओम इन्द्र वयणां सांभळी, पहोंची तिहां प्रणमे प्रभु; बेहु गर्भ पलटी रंगथी, जइ कहे ते नीज विभु. ॥६॥ (ढा. ६) (राग :--हारे मारे ठाम धरमना) हारे मारे अॅशी दिन इम वसीने द्विज घर मांहीजो; त्रिशला कुखे त्रिभुवन नायक आवीया रेलोल; हारे मारे तेहज राते चौद सुपन लहे मात जो; सुपन पाठक तेडीने अर्थ सुणावीयो रे लोल ॥१॥ हारे मारे गर्भ स्थिति पूर्ण थये जन्म्या स्वामी जो; नारक स्थावर जनना सुखने भावता रे लोल. ॥२॥ हारे मारे सुतीने करती धरती नीजमन हर्ष जो; अमरी रे गुण समरी नीज पद आवती रे लोल. ॥३॥ हारे मारे सोहम इंद्रादिकनो ओच्छव हुंत जो; सिद्धारथ पण तिम वली मन मोटो करे रे लोल. ॥४॥ हारे मारे नाम ठव्युं श्री वर्धमान कुमार जो; दिन दिन वाधे प्रभुजी कल्पतरु परे रे लोल. ॥५॥ हारे मारे देवे अभिधा दीधु श्री महावीर जो; जोवन वय वली विलसे नव नव भोगने रे लोल. ॥६॥ हारे मारेइम करतां गया मातपिता स्वर्ग मोजार जो; लोकांतिक तब आवी करे उपयोगने रे लोल. ॥७॥ हारे मारे वरसीदान दइने संजम लीध जो; परिसहने उपसर्ग सह्या प्रभुओ घणा रे लोल. ॥८॥ हारे मारे लाख वरस तपसी पूर्व भव नाथ जो; तो पण आ भव तपनी राखी नही मणा रे लोल. ॥६॥ हारे मारे बे खटमासी तेमां पण दिन उण जो; नव चउमासी बे त्रण मासीने लहुं रे लोल. ॥१०॥ हारे मारे बे अढीमासी तेमां खट बे मासी जाणजो; दोढ मासी दोय मासखमण बारे कहुं रे लोल. ॥११॥ हारे मारे बहोतेर पासखमण वली अठ्ठम बार जो; दोय शत ओगणत्रीश ओ छठ तपभणुं रे लोल. ॥१२॥ हारे मारे प्रभु तप तपीया ते जाणो विण नीरजो; त्रणसो ओगण पचाश जे पारणा दिन गणुं रे लोल. ॥१३॥ हारे मार तिम अप्रतिबंधी बेठा नही भगवंत जो; बार वरसमां निंद्रा बे घडीनी करी रे लोल. ॥१४॥ हारे मारे तेम निरमल ध्याने घाति कर्म खपायजो; दर्शन ज्ञान विलासी केवलने वरी रे लोल. ॥१५॥ हारे मारे केवल पाम्या

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