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नहि, सा० घाट घडामण जाय रे, गु० २ त्रांबु जे रस वेधीयुं, सा० ते होय जायँ हेमरे, गु० फरी त्रांबु ते नवि होवे, सा० एहवो जगगुरु प्रेम रे, गु० ३ उत्तम गुण अनुरागथी सा० लहिए उत्तम ठाम रे, गु० उत्तम निज महिमा वधे, सा० दीपे उत्तम धाम रे, गु० ४ उदक बिन्दु सायर भव्यो, सा० जिम होय अक्षय अभंग रे, गु० वाचक जश कहे प्रभु गुणे सा० तिम मुज प्रेम प्रसंग रे, गु० ५ .." (4) अनंत जिन स्तवन (राग : गिरनारनां डुंगरा सुनाहो)
मूरति हो प्रभु मूरति अनंत जिणंद, ताहरी हो प्रभु ताहरी मुज नयणे वसीजी; समता हो प्रभु समता रसनो कंद, सहेजे हो प्रभु सहेजे अनुभव रसलसीजी॥१॥ भव दव हो प्रभु भव दव तापित जीव, तेहने हो प्रभु तेहने अमृतघन समीजी; मिथ्या हो प्रभु मिथ्या विषनी खीव, हरवा हो प्रभु हरवा जांगुली मन रमीजी॥२॥ भाव हो प्रभु भाव चिंतामणी एह, आतम हो प्रभु आतम संपत्ति आपवाजी; एहिज हो प्रभु एहिज शिव सुख गेह, तत्त्व हो प्रभु तत्त्वालंबन थापवाजी॥३॥ जाये हो प्रभु जाये आश्रव चाल, दीठे हो प्रभु दीठे संवरता वधेजी; रत्न हो प्रभु रत्नत्रयी गुणमाळ, अध्यातम हो प्रभु अध्यातम साधन सधेजी॥४॥ मीठी हो प्रभु मीठी सूरत तुज, दीठी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथीजी; तुज गुण हो प्रभु तुज गुण भासन युक्त, सेवे हो प्रभु सेवे तसु भव भय नथीजी॥५।। नामे हो प्रभु नामे अद्भूत रंग, ठवणा हो प्रभु ठवणा दीठे उल्लसेजी; गुण आस्वाद हो प्रभु गुण आस्वाद अभंग, तन्मय हो प्रभु तन्मयताए जे धसेजी॥६॥ गुण अनंत हो प्रभु गुण अनंतनो वृंद, नाथ हो प्रभु नाथ अनंतने आदरेजी; देवचंद्र हो प्रभु देवचंद्रने आणंद, परम हो प्रभु परम महोदय ते वरेजी॥७॥
(5) अनंत जिन स्तवन (सनेही संत ए गिरि सेवो)
अनंतजिन सहज विलासी, प्रभु लोकालोक प्रकाशी, जिन केवल नाण विकासी, जिणंदराय, देशना देई तारे, भवजल निधि पार उतारे । जिणंदराय० १ गुणमणी खाणी सत्यवंती, नय ग्राम धारक धनवंती, भवि चित्त पंकज विलसंती। जिणंदराय० २ त्रिभुवनपति त्रिगडे सोहे, त्रिभुवन