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426 तुंही अलगो भव थकी पण, भविक ताहरे नाम रे; पार भवनो तेह पामे, एही अचरिज ठाम रे ।। प्रभु०॥३॥ जन्म पावन आज माहरो, नीरख्यो तुज नूर रे; भवो भव अनुमोदता जे, हुओ आप हजूर रे ।। प्रभु०॥४।। एह माहरो अखय आतम, असंख्यात प्रदेश रे; ताहरा गुण छे अनंता, किम करुं तास निवेश रे ? ।। प्रभु०॥५॥ एक एक प्रदेशताहरे गुण अनंतनो वास रे; एम कही तुज सहज मीलता, होये ज्ञान प्रकाश रे।। प्रभु०॥६।। ध्यान ध्याता ध्येय एकी, भाव होये एम रे; एम करतां सेव्य सेवक, भाव होये क्षेम रे।। प्रभु०॥७॥ एक सेवा ताहरी जो, होय अचल स्वभाव रे; ज्ञानविमलसूरिंद प्रभुता, होय सुजश जमाव रे ।। प्रभु०॥८॥
(17) श्री सामान्य जिन स्तवन पास जिणंदा माता वामाजीके नंदारे, तुम पर वारी जाउं बोल बोल रे, १ हारे दरवाजा तेरे खोल खोल रे, हम दरसन आये दोड दोड रे ।२। पूजा करुंगा में तो धूप धरूंगारे, फूल चढाउंगा बहु मोल मोल रे ।३। वे मेरा ठाकर में तेरा चाकर, एक वार मोसुं बोल बोल रे ।४। सुरत मंडन सुंदर सुरत, मुखडुते झाकम झोल रे झोल रे । ५। रूप विबुधनो मोहन प्रभणे, रंग लाग्यो चित्त चोल चोल रे ।६।।
(18) श्री सामान्य जिन स्तवन कृपा करो कृपा करो कृपा करो रे, सुमतिनाथ दादा मोहे कृपा करो रे, तारी कृपासे मारा काज सरो रे....१ कोल्हापुर शहेरना साई सोहामणा, देवाधिदेव करो दिलमां पधरामणा, अंतर पधारी मारूं श्रेय करो रे सु० २ भवनी गलीनो हुँ तो मँडो भिखारी, रूडा हे नाथ आज करू तारी यारी, शिवपुरना वासी मने याद करो रे सु० ३ तारे ने मारे नाथ अंतर जाजेलं, आवो अंतर तो मारा पापो विखेळं, पापो विखेरी दिलमां आवी मळो रे सु० ४ तारो विरह मारा दिलडाने डंखतो, तेथी तमारुं दर्स दिलथी हुं झंखतो, मोघेरी झंखनाने पूर्ण करो रे सु० ५ मंथन स्वरूप तारी यात्राना दावथी, टळशे वियोग तारो तारा सद्भावथी, मळवा एकांत मन मारूं मलो रे सु०६ प्रेमे सकळ संघ आज तने वंदतो, भुवन भानु तारो भक्त आनंदतो धर्मजित शीशतणी पीर हरो रे, ७