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(17) श्री शान्ति जिन स्तवन (राग : असो मति भैया)
सकल समीहीत सुरतरु कंदा, शांतिकरण श्री शांति जिणंदा, साहिबा जिनराज हमारा, मोहना जिनराज हमारा, त्रिकरण शुद्धे चरण तुम विलगो, पलक मात्र न रहुं हवे अलगो सा० (१) विलगाते अलगा केम जाशे, छंड्ये पण तुम्हे नवि छुटाशे, प्रभु तुमे केह श्युं नेह न लाओ, वीतराग कही सवि समजावो सा० (२) ब्रीजा अवर को इम समजे, पण छोरु दीधाथी रीझे, बाळकना हठ श्युं नवि चाले, जे मांगे ते मावित्र आले सा० (३) भगते खेंची मनमां आण्यां, सहज स्वभावपणे ते में जाण्यां, माहरे एह प्रतिज्ञा साची, तुम पद सेवा एक ज जाची सा० (४) कबजे आव्या तो केम छुटी जे, जे मुंह मांगे तेहीज दीजे, अभेदपणे जो मन में मिलश्यो, कबजे थकी तो प्रभु निकलशो सा० (५) अक्षयभाव निधि तुम पास, आपी दासनी पुरो आश ज्ञानविमल समकित प्रभु ताई, दीधी साहिब एक वडाई सा० (६) (18) श्री शान्ति जिन स्तवन (श्री शांतिनाथ स्वामीना स्तवनो)
हम मगन भये प्रभु ध्यानमें, ध्यानमें ध्यानमें ध्यानमें ह० बिसर गई दुविधा तनमनकी अचिरा सुत गुन गानमें, ह० १ हरिहर ब्रह्म पुरंदरकी ऋद्धि, आवत नहि कोउ मानमें,। चिदानंदकी मोज मची है, समता रसके पानमे, ह० २ इतने दिन तुं नाहि पिछांन्यों, मेरो जनम गयो सो अजानमें। अब तो अधिकारी होइ बैठे, प्रभु गुन अक्षय खजानमें ह० ३ गइ दीनता सबही हमारी, प्रभु तुज समकित दानमें। प्रभु गुन अनुभव रसके आगे, आवत नहि कोउ मानमें। ह० ४ जिनही पाया तिनही छीपाया, न कहे कोई के कानमें। ताली लागी जब अनुभवकी, तब जाने कोउ सानमें। ह० ५ प्रभु गुन अनुभव चंद्रहास ज्यौं, सो तो न रहे म्यानमें। वाचक जस कहे मोह महा अरि, जीत लीयो है मेदानमें। ह० ६
. (19) श्री शान्ति जिन. स्तवन
साहिब हो तुमे साहिब शांति जिणंद, सांभळो हो प्रभु सांभळो विनती माहरीजी। मनडुं हो प्रभु मनडुं रयुं लपटाय, सूरति हो प्रभु