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सूरति देखी ताहरीजी। १। आशा हो प्रभु आशा मेरू समान, मनमा हो प्रभु मनमा हती मुज अति घणीजी। पूरण हो प्रभु पूरण थइ अम आश, मूरति हो प्रभु मूरति दीठे तुम तणीजी |२| सेवक हो प्रभु सेवक जाणी स्वामी, मुजशुं हो प्रभु मुजशुं अंतर नवि राखीयेजी। विलगा हो प्रभु विलगा चरणे जेह, तेहने हो प्रभु तेहने छेह न दाखीयेजी।३। उत्तम हो प्रभु उत्तम जनशुं प्रीत, करवी हो प्रभु करवी निश्चे ते खरीजी। मुरख हो प्रभु मुरख शुं जसवाद, जाणी हो प्रभु जाणी तुमशुं मेकरीजी। ४ । निरवहवी हो प्रभु निरवहवि तुम हाथ, मोटाने हो प्रभु मोटाने भाखीये शं घणुंजी। पंडित हो प्रभु पंडित प्रेमनो भाण, चाहे हो नितु चाहे दरिशण तुम तणुंजी।५।
(20) श्री शान्ति जिन स्तवन (संभव जिनवर विनती)
सखी सेवो शांति जिणंदने । मन आणी अति उच्छाह रे । ए प्रभुनी जे सेवना, ते मानव भवनो लाह रे स० १ सेवा जे ए जिन तणी, ते साची सुरतरु सेव रे। आ जगमांहि जोवतां, अवर न एहवो देव रे। स० २ भगति भाव आणी घणो, जे सेवे ए निशदीश रे। सफळ सकल मन कामना, ते पामे वीसवावीस रे। स० ३ खिण एक सेवा प्रभु तणी। ते पूरे कामित काम रे। मार्नु त्रिभुवन संपदा, केरूं ए उत्तम धाम रे। स० ४ जनम सफळ जगे तेहनो, जे पाम्यो प्रभुनी सेव रे। पुण्य सकल तस प्रगटीयां, तस बेठ्या त्रिभुवन देव रे। स० ५ शिवसुख दायक सेवना, ए देवना देवनी जेह रे । पामीने जे आराधशे। शिवसुख लहेशे तेह रे। स० ६ इम जाणी नितु सेवीए, जिम पहोंचे वंछित कोडी रे। ज्ञानविजय बुधरायनो इम शिष्य कहे करजोडी रे। स०७
(21) श्री शान्ति जिन स्तवन । मोरा साहिब हो श्री शांतिजिणंद के, चंदन शीतल देशना, आवी नमे झे प्रभु ताहरा पाय के। सुरपति नरपति देशना । १। सुखकारी हो प्रभु ताहरो दीदार के, सार संसारमा एह छे। वारी जाउं हो हुं वार हजार के, चंद चकोर जयुं नेह छ । २। धर्मारथ हो पुरूषार्थ चार के, मोक्ष फळे सवि