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322 हुवेरे, ते निमित्त अति पुष्ट; पुष्पमांहि तिलकवासक वासनारे, नहि प्रध्वंसक दुष्ट, ओ०।३। दंड निमित्त अपुष्ट घडा तणो रे, नवि घटता तसु मांहि; साधक साधक प्रध्वंसकता अछे रे, तिणे नहि निमित्त प्रवाह, ओ०। ४ । षटकारक षटकारक ते कारण कार्यनोरे, जे कारण स्वाधीन; ते कर्ता कर्ता सहु कारक ते वसुरे, कर्म ते कारण पीन, ओ०।५। कार्य कार्य संकल्पे कारकदशारे, छति सत्ता सद्भाव; अथवा तुल्य धर्मने जोयवेरे, साध्यारोपण दाव, ओ०।६। अतिशय अतिशय कारण कारक ते रे, निमित्त अने उपादान; संप्रदान संप्रदान कारण पद भवनथी रे, कारण व्यय अपादान, ओ०।७। भवन भवन व्यय विण कार्य नवि होवे रे, जिम द्वषदे न घटत्व; शुद्धाधार शुद्धाधार स्वगुणनो द्रव्य छे रे, सत्ताधार सुतत्त्व, ओ०।८। आतम आतम कर्ता कार्य सिद्धतारे, तसु साधन जिनराज; प्रभु दीठे कारज रुचि उपजे रे, प्रगटे आत्म सम्राज, ओ०।६। वंदन वंदन नमन सेवन वळी पूजनारे, समरण स्तवन वळी ध्यान; देवचंद्र देवचंद्र कीजे जिनराजनो रे, प्रगटे पूर्ण निधान, ओ०।१०।
(7) श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन (हारे मारे धर्मजिणंदशुं)
हारे मुज प्राण आधार तुं मुनिसुव्रत जिनराय जो, मळीयो हेजे हळियो प्रीत प्रसंगथी रे लोल। हारे मुज सुंदर लागी माया ताहरी जोर जो। अलगो रे न रहुं हुं प्रभु तुज संगथी रे लोल ।१। हारे मा अमीय कचोला हेजाळा तुज नेण जो, मनोहर रे हसित वदन प्रभु ताहरुं रे लो। हां रे कोईनी नहि तीन भुवनमां तुम सम मूर्ति जो। एहवी सुरती देखी उलस्युं मन माहीं रे लो । २। हारे प्रभु अंतर पडदो खोली कीजे वात जो, हेज हैयानी आणी मुजने बोलावीये रे लो। हारे प्रभु नयण सलुणे सन्मुख जोई एकवार जो, सेवकना चित्तमांहि आनंद उपजावीयेरे लो।३। हारे प्रभु करूणा सागर दीनदयाल कृपाल जो। महेर धरी मुज उपर प्रीत धरी हीये रे लो। हारे प्रभु निज बालक परे मुज लेखवजो जिणंदजो । प्रीत सुरंगी अविहड मुजरों निवाहीये रे लो । ४ । हारे प्रभु बांह ग्रह्यानी लाज छे तुजने स्वामी जो। चरण सेवा मुजने देजो हेते हसी रे लो। हारे प्रभु पंडित प्रेमविजयनो कवि एम भाणजो। पभणे रे जिन मूरति मुज दिलमां वसी रे लो । ५ ।