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फुटडो, देखी डुंगर हो हरख्यो भणे भूप. के०...श्री०. ॥१०॥ रतन कनक थुभ ढुंकडो, करो कंचननो प्रासाद उत्तंग के; चउबारो चोंपे करी, ओक जोयण हो माने मनरंग के०...श्री०. ।।११।। सिंह निषद्या नामनो, निपायो हो मंडप प्रासादके; त्रण कोश उंचो कनकमय, ध्वज कळशे हो करे, मेरुंशं वादके...श्री०. ॥१२॥ वर्ण प्रमाणे लंछन, जिनसरखी हो तेह. प्रतिमा कीध के; दोय चार आठ दश भली, रुषभादिक हो पूरवे प्रसिद्ध के०...श्री०. ।१३।। कंचन मणी कमले ठवीं, प्रतिमानी हो आणी नासिका जोडी के; देवछंदो रंगमंडपे, नीलां तोरण हो करी कोरणी कोडी के०...श्री०. ।।१४।। बंधव बहेन माता तणी, मोटी मूरति हो मणी रतने भराय के; मरुदेवा मयगल चढी, सेवा करती हो जिन मुरति नीपाई के०...श्री०. ।।१५।। प्रातिहार्य छत्र चामरा, जक्षादिक हो कीधा अभिषेक के; गोमुख चतुर चक्केसरी, गढ वाडी हो कुंड वाव विशेष के,०...श्री०. ॥१६।। प्रतिष्ठा सवि प्रतिमा तणी, करावे हो राय मुनिने हाथ के, पूजा स्नात्र प्रभावना, संघभक्ति हो खरची खरी आथके,...श्री०. ।।१७।। पडते आरे पापीया, मत पाडो हो कोई वास आ वाटके; अक अक जोयण आंतरे, इम चिंती हो करी पावडी आठ के०...श्री०.॥१८॥ देव प्रभावे ओ देहरा, होशे अविचल हो छठे आरे सीम के; वांदे आप लब्धे ते नर तरे, तरे भव हो भवसायर भीम वडवीर के,०...श्री०. ॥१६॥ श्री कैलास ना राजीआ, दीओ दरीसण हो कांई करो ढील के; अरथी होय उतावळो, मत राखो हो अमरों आडखील के०...श्री०. ॥२०।। मन मान्याने मेळवे आवा स्थाने हो कोई न मळे मित्तके; अंतरजामी मिल्या पखे, किम चाले हो रंग लागो चित्त के०...श्री०. ॥२१।। ऋषभजी सिद्धि वधू वर्या, चांदलीया हो ते देउल देखाड; के भले भावे वांदी करी, मांगुं मुगतिना हो मुज बार उघाड के०...श्री०. ॥२२॥ अष्टापदनी यातरा फळ पामे हो भावे आ भणी भास के; श्री भावविजय उवज्झायनो, भाणभाखे हो फळे सघळी आश के०,...श्री०.॥२३।।
(33) श्री अष्टापदनुं स्तवन (राग : बारबार वरसे) .
तीरथ अष्टापद नित्य नमीजे, जीहां जिनवर चोवीश जी मणीमय बिंब भराव्या भरते, हुं वंदु निशदिन जी० (१) निज निज देह प्रमाणे मुरति,