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गयो बहु वायदे, ते तो में न खमाय सनेही,। जोगवाई आ फरी फरी, पामवी दुरलभ थाय सनेही। सं० ७ भेदभाव मुकी परो, मुजशुं रमो एकमेक सनेही। मान विजय वाचक तणी, ए विनती छे छेक सनेही। सं० ८ (8) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (रूप अनूप निहाळी सुमति जिन) ___ श्री संभव जिनराय के, मुज मनमां वस्यो, देखी प्रभु मुख नूर के, हीयडो उल्लस्यो। पाम्यो हर्ष अपार के, मनवंछित फळ्यो, जगजीवन जिनराय के, जो मुजने मिल्यो। १ पाम्यो आनंद पूर के,दुःख दूरे गया, भेटये श्री जिनराय के, वंछित सवि लह्या। पाम्यो भवजल पार के, सार ए दिन गणुं, दीर्छ जो सुखकार के, दरिशन जिन तणुं । २ फळीयो सुरतरू बार के, सार ए दिन थयो, प्रगट्यो पुन्य अंकुर के, पातिक सवि गयो। सिध्यां वंछित काज के, आज ए दिन भलो, भक्तवत्सल भगवंत के, दीठो गुणनीलो। ३ आज थयो सुकयथ्य के, जनम आ माहरो, परम पावन दीदार के, दीठो ताहरो पाम्यो नवनिधि सिद्धि रे, रिद्धि सवि मिली, दीठे प्रभु दीदार के, आशा सवि फळी। ४ नाठा माठा दूर के, दुश्मन जे हता, फरीय न आवे तेह के, न होये वळी छता। गयां सर्व करम के शर्म आवी मळ्युं, भेटये श्री भगवंत के, वंछित सवि फळ्युं । ५ महेर करी महाराज के चरणे राखीये, सेवक तुं मुज एम के सुवचन भाखीये । होए वंछित सिद्धि के, प्रवचन साखीये, अवसर पामी स्वामी के, दरिशन दाखीये। ६ तुम सेवाथी स्वामी के, शिवसुख पामीये, एटले कोडि कल्याण के, घj शुं भाखीये,। ज्ञान विजय गुरू शिष्य के, प्रणमे लळी लळी, तुज चरणांबुज सेवके, होजो वळी वळी। ७ (9) श्री संभवनाथ जिन स्तवन (राग : अजित जिणंदशुं प्रीतडी)
भवतारण संभव प्रभु, नित नमीये हो, नव नव धरी भाव के, नवरस नाटक नाचीये, वळी राचीये हो, पूजा करी चाव के सेनानंदन वंदीये। १ दुःख दोहग दूरे करी, उपगारी हो, मही महिमावंत के,। भगवंत भक्तवछल भलो, सांई दीठे हो, तन मन विकसंत के। सेना० २ अपराधी तें उद्धर्यां, हवे करीये हो तेहनी केही वात के। मुज वेळा आळस धरे, किम विणसी