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साहिबा (२)...तुंही० (२) शब्दातीत कहायो हो, साहिबा० (२)...तुंही रूप निहाळी परिचय किनो, रूपमाही नहिं आयो, प्राति हारज अतिशय नाणे, शास्त्रमा बुद्ध न लखायो (२)...तुंही० (३) शब्द न रूप न गंध न रस नहि, फरस न वरण न भेद, नहि संज्ञा नहि छेदन भेदन, हास्य नहि नहि खेद (२)...तुंही० (४) सुख नहिं दुःख नहि वळी वांछा नहि रोग, योग ते भोग नहि गति नहि थीती नहि रति अरती नहि तुज हर्ष शोग (२) ...तुंही० (५) पुन्य न पाप न बंधन छेदन, जन्म न मरण न पीडा, राग न द्वेष न कहत न भय नहि नहि संताप न क्रिडा(२) ...तुंही० (६) अलख अगोचर अज अविनाशी, अविकारी निरूपाधि, पुरण ब्रह्म चिदानंद साहिबा, ध्यावो सहज समाधि, (२) ...तुंही० (७) जे जे पूजो ते ते अंगे, तुं तो अंगथी दूर, माटे पूजा उपचारक न धरे ध्यान ने पूर(२) ...तुंही० (८) चिदानंद घन केरी पूजा, निर्विकल्प उपयोग, आतम परमातमने अभेदे, नहि कोई जडनो योग, (२) ...तुंही० (६) रूपातित ध्यानमा रहेतां, चंद्रप्रभु जिनराया मानविजय वाचक एम बोले, प्रभु सरखाईन थाय (२) ...तुंही० (१०)
(7) श्री चंद्रप्रभ जिन स्तवन चंद्रप्रभुजी मने तारो, खरो आशरो मने अक तारो, चंद्रप्रभु मने तारो राज तारो तारो प्रभुजी मने तारो, खरो आशरो मने अक तारो। नरकनिगोदमां भवभव भमीयो, छेदन-भेदन खमीयो, परवशमां पण कर्मे दमीयो, काळ अनादि निर्गमीयो हो राज० (१) भाग्य उदयथी नरभव पायो, विषयातुर थई फरीयो, पुन्य पापनी खबर पडेना, पापनो पोटलो भरीयो हो राज० (२) रात-दिवस धन कारण रळीयो, ज्यां त्यां अति आथडियो, हो राज रतिभर जेटलुं धनं नवि मळीयु, निबीड विघन घन नडीयो हो राज० (३) भान पोतानुं हुं प्रभु मूल्यो, फोगट गुण विण फूल्यो, जन्म अनंता गर्भे झुल्यो, दुःखना दरियामां डूब्यो हो राज० (४) दान सुपात्रे में नवि दीधुं, शियळ न पाळ्युं शुद्ध, किंचित् तप पण में नवि कीर्छ, भाव पियूष मत पीधुं हो. राज० (५) जालिम कोधानलथी बळीयो, गर्वेमहोरगे गळीयो हो राज माया सांकळथी सांकळीयो, लोभ-पिशाचे छलीयो हो राज० (६) क्षमानिधि तुज चरणकमलमां, आजे अंतर्यामी हो राज निराश्रयी थई अरज