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(1) श्री आदिनाथ जिन स्तवन बोलबोल आदिशर दादा, कांईथारी मरजी रे, केमांशुमुंडे बोल। माता मरुदेवी वाट जोवंता, इतरे बधाई आयी रे, आज रिषभजी उतर्या बाग में, सुण हरखाई रे.॥१।। नाय धोय ने गज असवारी, करी मरुदेवी माता रे, जाय बाग में नन्दन निरखी, पाई शाता रे.॥२॥ राज छोडने निकल्यो रिखबो,
आ लीला अद्भूती रे, चमर छत्र ने और सिंहासन, मोहनी मूरति रे.।।३।। दिनभर बैठी वाट जोवंती, कद म्हारो रिखबो आवे रे, कहती भरतने
आदिनाथ की, खबरां लावो रे.।।४।। किस्या देश में गयो वालेसर, तुझ विना विनीत सूनी रे, बात कहो दिल खोल लालजी, क्युं बन्यां मुनिजी रे.।।५।। रह्यां मजा में हो सुख शाता, खूब किया दिल चाया रे, अब तो बोल आदिसर माशु, कम्पे काया रे.॥६॥ खैर हुई सो हो गयी वाला, बात भली नहीं कीनीरे, गया पछे कागद नहीं दीनो, म्हारी खबरा न लीनी रे.।।७।। ओलम्बो मैं देउ कठै तक, पाछो क्युं नहीं बोले रे, दुख जननी को देख आदीसर, हियडे तोले रे.।।८।। अनित्य भावना भाई माता, निज आतम ने तारी रे, केवल पामी ने मोक्षे सिधाव्या, ज्याने वन्दना हमारी रे.॥६॥ मुक्ति रा दरवाजा खोल्या, श्री मरुदेवी माता रे, काल असंख्या रह्यो उघाड़ा, जम्बू जड गया ताला रे.॥१०॥ साल बहोत्तर तीर्थ ओसिया, गयवर प्रभु गुण गाया रे, मूरति मनोहर प्रथम जिणंदकी, प्रणमूं पाया रे.।।११।।
(2) श्री आदिनाथ जिन स्तवनो आदिनाथ! ताहरा गुण मुखगाउं, गंगा क्षिरोदधि शुद्ध जलसे, स्नात्रविधि विरचा...आदिनाथ०.॥१॥ पूजा करुं भावे मन शुद्धे, केसर पुष्प चढावू...आदिनाथ०.।।२।। धूप उखेवू, करुं आरती, भावना शुभ मन भावं...आदिनाथ०.॥३॥ जो कछु जानो तो कीजे भलाई, जनम जनम सुख पावू...आदिनाथ०.॥४॥ प्रेम धरीने कांति पयंपे, प्रभु चरणे चित्त लावू... आदिनाथ०.॥५॥
(3) श्री आदिनाथ जिन स्तवन नाभिराया कुल वंशे उदयोदिणंद, देवनो में देव दिठो आदि जिणंद.