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देव श्रुत छट्ठा जिणंद, कार्तिक शेठ वखाण. ३ श्री उदयनाथ जिन सातमा, शंख श्रावक जीव; श्री पेढाल जिन आठमा, आनंद मुनि जीव. ४ पोटिल नवमा वंदिये, जीव जेह सुनंद; शतकीर्ति दशमा जिनंद, शतक श्रावक आणंद. ५ सुव्रत जिन अग्यारमा, देवकी राणी जाण; अमम जिनवर बारमा, श्री कृष्ण गुणखाण. ६ निष्कषाय जिन तेरमा, सत्यकी विद्याधर; निष्पुलाक जिन चौदमा, बलभद्र सोहंकर. ७ श्री निर्मम जिन पंदरमा, सुलसा श्राविका जिव; चित्रगुप्त जिन सोलमा, रोहिणी राणी जीव. ८ श्री समाधिजिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण; श्री संवर जिन अठारमा, जीव शतानी वखाण. ६ श्री यशोधर ओगणीशमा, जीव कृष्ण द्विपायन; विजय नाम जिन वीसमा, जीव कर्ण सहायण. १० ओकवीशमा श्री मल्लिनाथ, कृष्ण नारद कही ओ; अंबड श्रावक जिन देव, बावीशमा लहीओ. ११ अनंत वीर्य त्रेवीशमा, जीव अमरनो जेह; श्री भद्रजिन चोवीशमा, स्वाति बुद्ध गुण गेह. १२ अ चोवीशे जिनवरा, होशे आवते काले; भाव सहित ते वंदिओ, करजोडी भाले. १३ लंछन वर्ण प्रमाण आयुष्य, अंतर सवि सरखा; संप्रति जिन चोवीश परे, चडते सवि निरखा. १४ पंच कल्याणक तेहनां अ, होशे ओ दिवसे; धीर विमल गुरुनो कहे, ज्ञान विमल सूरिश. १५
(151) श्री शांतिनाथ जिन चैत्यवंदन
सकल कुशल वल्ली, पुष्करावर्त मेघो, दुरित तिमिर भानु, कल्पवृक्षो पमान; भवजलनिधि पोत; सर्व संपत्ति हेतु स भवतु सततंवः श्रेयसे शांतिनाथः श्रेयसे पार्श्वनाथः १
(152) श्री पंच परमेष्ठिनुं चैत्यवंदन
अर्हन्तो भगवन्त इन्द्र महिताः सिद्धाश्च सिद्धि स्थिता, आचार्या जिन शासनोन्नतिकराः, पूज्या उपाध्यायका; श्री सिद्धान्त सुपाठका मुनिवरा, रत्नत्रयाराधका; पंचैते परमेष्टिनः प्रतिदिनं कुर्वन्तु वो मंगलम् . १
(153) श्री सामान्य जिन चैत्यवंदन
तुज मूरतिने निरखवा, मुज नयणा तलसे; तुम गुण गणने बोलवा, रसना मुज हरखे. १ काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे; तो