Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 9
________________ 1. 2. 3. 4. 5. संबंधक कृदन्त हेत्वर्थक कृदन्त वर्तमान कृदन्त 1. संबंधक कृदन्त जब कर्ता एक क्रिया समाप्त करके दूसरा कार्य करता है तो पहले किये गये कार्य के लिए 'संबंधक कृदन्त ' का प्रयोग किया जाता है । इसमें कृदन्तवाचक शब्द और सामान्य क्रिया दोनों का संबंध कर्ता से होता है। जैसे - वह 'हँसकर सोता है, इसमें हँसने और सोने का संबंध कर्ता 'वह' से है। संबंधक कृदन्तवाचक शब्द अव्यय होते हैं इसलिए इनका वाक्य-प्रयोग में रूप-परिवर्तन नहीं होता है। 'लिंग, विभक्ति और वचन के अनुसार जिनके रूपों में घटती-बढ़ती न हो, वह अव्यय है ।' भूतकालिक कृदन्त विधि कृदन्त संबंधक कृदन्त अकर्मक क्रियाओं और सकर्मक क्रियाओं में प्रत्यय जोड़कर बनाये जाते हैं। जब प्रत्यय सकर्मक क्रियाओं में जोड़े जाते हैं तब उनके साथ कर्म का प्रयोग अनिवार्य होता है । जैसे वह जल 'पीकर' जाता है। इस वाक्य में 'पीकर' सकर्मक क्रिया से बना हुआ 'संबंधक कृदन्त' है जिसके लिए 'जल' कर्म के रूप में प्रयुक्त हुआ है। अपभ्रंश भाषा में क्रिया में निम्नलिखित प्रत्यय जोड़कर संबंधक कृदन्त बनाये जाते हैं इ इउ इवि 2] संबंधक कृदन्त क्रिया + प्रत्यय के प्रत्यय — Jain Education International हस + इ हस + इउ हस + इवि कृदन्तवाचक शब्द हिन्दी अर्थ हसि हसिउ हसिवि हँसकर हँसकर हँसकर [ पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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