Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan
Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara
Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy

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Page 8
________________ 1. कृदन्त - परिचय मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, समाज में रहते हुए वह एक-दूसरे से परस्पर व्यवहार करता है। परस्पर व्यवहार के साधनों में विचारों की अभिव्यक्ति प्रधान है। विचारों की अभिव्यक्ति के माध्यमों में जिस माध्यम का सर्वाधिक उपयोग होता है, वह है 'भाषा' | भाषा मनुष्य को मिला हुआ वह शब्दमय वरदान है, जिसके द्वारा मनुष्य बोलकर या लिखकर अपने विचार दूसरों पर सरलता, स्पष्टता, विस्तार तथा पूर्णता से व्यक्त कर सकता है। इसलिए 'भाषा' जगत के व्यवहार का मूल है। ___भाषा निरन्तर परिवर्तनशील है, उसमें समय एवं स्थान के परिवर्तन से स्वतः परिवर्तन होते रहते हैं। प्रत्येक भाषा के निरन्तर प्रवाह में समय -समय पर कुछ नये शब्द आते रहते हैं और कुछ प्रचलित शब्दों का प्रयोग छूटता जाता है। भाषा में होते रहनेवाले परिवर्तनों के बाद भी उसका जो साहित्यिक रूप रहता है उसको सही रूप में लिखने, पढ़ने और बोलने के लिए उसके व्याकरण की आवश्यकता होती है। व्याकरण वह शास्त्र है जिसके अध्ययन द्वारा हम किसी भाषा का सूक्ष्म ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं तथा उससे भाषा के प्रयोग में कुशलता प्राप्त कर सकते हैं। व्याकरण भाषा का विश्लेषण करके उसके स्वरूप को प्रकट करता है और भाषा को स्व-रूप में पढ़ने, समझने और लिखने की विधि सिखाता है। ____ व्याकरण की विभिन्न इकाइयों में से एक इकाई है - 'कृदन्त' । कृदन्त भाषा को सौन्दर्य प्रदान करते हैं। किसी भाषा को तथा उसके साहित्य को समझने के लिए कृदन्तों का ज्ञान आवश्यक है। क्रिया में विशिष्ट प्रत्ययों को जोड़ने से विभिन्न कृदन्तों का निर्माण किया जाता है। जो शब्दांश स्वयं कुछ भी अर्थ नहीं रखते हुए शब्दों के अन्त में जुड़कर नया अर्थ प्रकट कर देते हैं, उन्हें 'प्रत्यय' कहते हैं। चूंकि क्रिया में जोड़े जानेवाले प्रत्यय भिन्न – भिन्न प्रकार के हैं, उसी के अनुसार कृदन्त भी भिन्न – भिन्न प्रकार के हैं। व्याकरण शास्त्र में पाँच प्रकार के कृदन्त माने गये हैं - पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन] Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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