Book Title: Paumchariu me Prayukta Krudant Sankalan Author(s): Kamalchand Sogani, Seema Dhingara Publisher: Apbhramsa Sahitya Academy View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय 'पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन' पाठकों के हाथों में समर्पित करते हुए हमें हर्ष का अनुभव हो रहा है। आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओं के अध्ययन में अपभ्रंश का अध्ययन आवश्यक है। अपभ्रंश को सभी नव्य भारतीय भाषाओं का मूलस्रोत होने का गौरव प्राप्त है। अपभ्रंश की कोख से ही सिन्धी, गुजराती, पंजाबी, मराठी, राजस्थानी, उड़िया, बंगाली, हिन्दी आदि आधुनिक भाषाओं का जन्म हुआ है। अतः राष्ट्रभाषा हिन्दी सहित अन्य सभी भारतीय भाषाओं के इतिहास के अध्ययन के लिए अपभ्रंश भाषा का अध्ययन आवश्यक है। अपभ्रंश साहित्य के अध्ययन-अध्यापन एवं प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र श्री महावीरजी द्वारा संचालित जैनविद्या संस्थान के अर्न्तगत अपभ्रंश साहित्य अकादमी' की स्थापना सन् 1988 में की गई। अकादमी का प्रयास है - अपभ्रंश के अध्ययन–अध्यापन को सशक्त करके उसके सही रूप को सामने रखना जिससे प्राचीन साहित्यिक निधि के साथ-साथ आधुनिक आर्यभाषाओं के स्वभाव और उनकी संभावनाएं भी स्पष्ट हो सकें। अपभ्रंश भाषा के सीखने-सिखाने की दृष्टि को ध्यान में रखकर ही ' अपभ्रंश रचना सौरभ', ' प्राकृत रचना सौरभ', 'प्रौढ़ प्राकृत रचना सौरभ', 'प्रौढ अपभ्रंश रचना सौरभ', 'अपभ्रंश काव्य सौरभ', 'प्राकृत गद्य-पद्य सौरभ' आदि पुस्तकों का प्रकाशन किया जा चुका है। इसी क्रम में 'पउमचरिउ में प्रयुक्त कृदन्त-संकलन' प्रकाशित है। महाकवि स्वयंभू रचित 'पउमचरिउ' लोकभाषा में रचित रामकथात्मक काव्य है। साहित्य जगत में स्वयंभू अपभ्रंश के आदिकवि माने जाते हैं। इन्होंने जनसामान्य की भाषा में रचना कर साहित्य के क्षेत्र में अपभ्रंश को गौरवपूर्ण स्थान दिलाया। किसी भी भाषा को Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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