Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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४०६
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
अह अट्टमम्मि वरिसे सक्खी काऊण सो उवज्झायं ।। सयलं कलाकलावं, कुमरो परिकलइ लीलाए ।। २३१ ॥ एत्थंतरे वणंतरचारी तह विरहिहरिणसंहारी ।। दुइंत-सिसिर-वारण-दारण-अइभीमवावारो ।। २३२ ॥ अंतो निलीणमहुयर-पाडल-वर-कुसुम-नयण-दुद्धरिसो॥ पवणचललवलिजीहो, वसंतसीहो तहिं पत्तो ।। २३३ ।। मल्लीवल्लीसु दिन्ना भुवणमणहरा कुंदलच्छी असेसा, धोयस्सेयं सुएसं पयमिहविहियं रत्तवत्थाण सव्वं ॥ गोरव्वा चंददित्ती न उण रविकरा गिण्हए रज्जमित्थं, धूलिं दाउं वसंतो सिसिरनिवमुहे धुलिपव्वच्छलेणं ॥ २३४ ।। मंदं दक्खिणपवणो चरो व्व मयणस्स चरइ सुणणत्थं ।। को न कुणइ पहुआणं को वा माणं करेइ त्ति ॥ २३५ ।। पत्तं वसंतसमयं मुणिऊणं महापउमकुमरो सो ।। कुसुमावयंसकाणणमणुपत्तो मित्तसंजुत्तो ।। २३६ ॥ मणिकंचणघडियाए सुहरसघडियाए सो समारूढो ।। दोलाए गयणसरे, तरेइ लीलाए हंसो व्व ।। २३७ ॥ तरुणि-मण-हियय-मंथण-मंथाण-समाण-नयण-वित्थारो ॥ जलकेलिं सरसलिले, वरुणकुमरो व्व निम्मवइ ।। २३८ ॥ पुण कयवरनेवत्थो, बंधुरसिंगारभासुरसरीरो ।। उवविसइकामदेवाययणे मणिमत्तवारणए ।। २३९ ।। सो मल्लाण निजुद्धं, अंधाणं रज्जुहत्थाण ।। चिट्ठइ पहट्ठचित्तो, पिच्छंतो पिच्छणिज्जाणि ।। २४० ।। अह चित्तयरकुमारा, संपत्ता तत्थ पट्ठिया हत्था ।। सव्वंगचंगदेहा, समाणवयवेसमारूढा ॥ २४१ ।। कुमरपुरस्सरपुरिसा पुरओ गायंति ते इमं चरियं ॥ अच्छरियं जणयंतं, जणसवणसुहारसासारं ॥ २४२ ॥
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