Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
४६२
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
झंपाविस्सइ सहसा, तुह दुक्खकडक्खिओ जलणे ।। ९४३ ।। तत्तो मा मा सुपुरिस ! करेसु संहारमसममेयाणं ।। आयं चेयं विचिंतिय भंजियनियमं पि नीहरसु ।। ९४४ ।। तत्तो संकडपडिओ चिंतइ कुमरो किमेत्थ कायव्वं ॥ एगत्थ नियमभंगो, अनत्थ असेसजणमरणं ।। ९४५ ।। अहवा एए सयणा, सकज्जकरणुज्जया न अन्नस्स ।। कज्जे मरंति अहवा, मरंतु नियमं न भंजिस्सं ॥ ९४६ ।। खणदुक्खकारणाओ नीहरिय पलीवणाउ एयाउ ॥ संसारपलीवणए, बहुदुक्खे नेव निवडिस्सं ।। ९४७ ।। एत्थंतरम्मि सासणदेवी, सहसा सविम्हया तत्थ ॥ संपत्ता तं तियसं, जंपइ रे रे किमारद्धं ? ॥ ९४८ ।। रे दुट्ठ ! इमो कुमरो, जइ निय नियमं न भंजए कह वि ।। ता तुज्झ कीस जायं, हिययं गुरुमच्छरच्छनं ? ॥ ९४९ ।। अह सो तियसो सहसा, नासइ गहिऊण जीवियं निययं ।। नणु होति रक्खसाण वि, भयंकरा भेक्खसा के वि ॥ ९५० ।। जणमणसंतावेहिं, सहसा सा तं पलीवणं देवी ।। विज्झवइ झत्ति कज्जं, किमसझं अहव गरुयाणं ॥ ९५१ ॥ सा आह कुमरं संमुहमिह धन्नो वीरपुरिससिररयणं ।। तं चिय तिलोयमझे, जस्सेरिसमविचलं चित्तं ।। ९५२ ।। गिण्हंति नेय नियम, अहवा गिण्हंति तयणु भंजंति ।। गहिऊण नियं नियम, विरला पालंति सप्पुरिसा ॥ ९५३ ।। ता कहसु किमवि कज्जं, कुमरो जंपइ जिणिंदधम्मम्मि ।। संपत्तम्मि समीहा, का नाम असारकज्जाणं ।। ९५४ ।। तह वि हु तुमए कज्जा, जत्ता नंदीसराइतित्थेसु ।। अवहियहियएण तहा पभावणा सासणे निच्चं ॥ ९५५ ॥ इय भणिया सा देवी, जयउ जयउ जिणवरिंदपन्नत्तो ।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530