Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
परमो कम्मोवरमो, सासय-सोक्खं च पज्जंते ॥ ९६८ ।।. परिवालियस्स समणोवासगपवरेहिं पोसहवयस्स ।। एए गुणा पसत्था, परूविया जिणवरिंदेहिं ।।९६९ ॥ सेज्जा संथाराणं, अप्पडिलेहाय दुप्पडिलेहा ।। अप्पमज्जण-दुप्पमज्जणमेवं उच्चारभूमीए ।। ९७० ।। भोयण-आभोगो वि य, एए पोसहवयस्स अइआरा ।। जाणेयव्वा सम्मं पंच वि तत्तो चएयव्वा ।। ९७१ ।। सिद्धंत-सिद्ध-विहिणा, जे परिवालंति पोसहप्पडिमं ।। कुरुचंदो व्व न तेसिं, दूरे सग्गोपवग्गो वा ॥ ९७२ ।। गयणग्गलग्गसाला, तह नव जोयण-पसत्थ-वित्थारो ।। बारस-जोयणदीहा, अत्थि अउज्झापुरी भरहे ।। ९७३ ।। उववण-तरुणो जत्थ य, ससिमणिसंचयविणिम्मिया बाला ॥ उल्लसिय पल्लविल्ला सया वि रेहंति सच्छाया ।। ९७४ ।। सयमेव देवराया, करेइ सिरिरिसहरज्जसमए जं ।। कणयमयभवणबंधुरमाइमनयरिं भरहमज्झे ॥ ९७५ ।। तस्सा असरिससोहं, सहस्सजीहो वि साहिउं न खमो॥ पडिपुन्नवन्नणाए, इयर कई कहसु हा इंतु ॥ ९७६ ॥ भुवण-मण-नयण-णंदन-पवित्त-निय-चरिय-हरिय-जणचित्तो ॥ हरिचंदणसममहिमा, हरिचंदो तत्थ महिनाहो ।। ९७७ ।। जस्स जस-दुद्ध-सायर-मग्गा, निस्सीमहरिसवियसंता ।। सीमंतणी समूहा, मन्नंति सया वि जलकेलि ।। ९७८ ॥ कय अच्छरियं चरियं वित्थरियं जस्स भुवणवलयम्मि ।। मोत्तियउत्तं सत्तं, पत्तं जणसवणमूलेसु ॥ ९७९ ।। अह तस्स कुरुमईए, निवस्स दइयाए सयलगुणकलिओ ।। जणहिययजलहिचंदो, कुरुचंदो नंदणो जाओ ।। ९८० ॥ अहिगयकलाकलाओ सविसेसुल्लसियअंगचंगत्तं ।।
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