Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 493
________________ ४६४ सिरिपउमप्पहसामिचरियं परमो कम्मोवरमो, सासय-सोक्खं च पज्जंते ॥ ९६८ ।।. परिवालियस्स समणोवासगपवरेहिं पोसहवयस्स ।। एए गुणा पसत्था, परूविया जिणवरिंदेहिं ।।९६९ ॥ सेज्जा संथाराणं, अप्पडिलेहाय दुप्पडिलेहा ।। अप्पमज्जण-दुप्पमज्जणमेवं उच्चारभूमीए ।। ९७० ।। भोयण-आभोगो वि य, एए पोसहवयस्स अइआरा ।। जाणेयव्वा सम्मं पंच वि तत्तो चएयव्वा ।। ९७१ ।। सिद्धंत-सिद्ध-विहिणा, जे परिवालंति पोसहप्पडिमं ।। कुरुचंदो व्व न तेसिं, दूरे सग्गोपवग्गो वा ॥ ९७२ ।। गयणग्गलग्गसाला, तह नव जोयण-पसत्थ-वित्थारो ।। बारस-जोयणदीहा, अत्थि अउज्झापुरी भरहे ।। ९७३ ।। उववण-तरुणो जत्थ य, ससिमणिसंचयविणिम्मिया बाला ॥ उल्लसिय पल्लविल्ला सया वि रेहंति सच्छाया ।। ९७४ ।। सयमेव देवराया, करेइ सिरिरिसहरज्जसमए जं ।। कणयमयभवणबंधुरमाइमनयरिं भरहमज्झे ॥ ९७५ ।। तस्सा असरिससोहं, सहस्सजीहो वि साहिउं न खमो॥ पडिपुन्नवन्नणाए, इयर कई कहसु हा इंतु ॥ ९७६ ॥ भुवण-मण-नयण-णंदन-पवित्त-निय-चरिय-हरिय-जणचित्तो ॥ हरिचंदणसममहिमा, हरिचंदो तत्थ महिनाहो ।। ९७७ ।। जस्स जस-दुद्ध-सायर-मग्गा, निस्सीमहरिसवियसंता ।। सीमंतणी समूहा, मन्नंति सया वि जलकेलि ।। ९७८ ॥ कय अच्छरियं चरियं वित्थरियं जस्स भुवणवलयम्मि ।। मोत्तियउत्तं सत्तं, पत्तं जणसवणमूलेसु ॥ ९७९ ।। अह तस्स कुरुमईए, निवस्स दइयाए सयलगुणकलिओ ।। जणहिययजलहिचंदो, कुरुचंदो नंदणो जाओ ।। ९८० ॥ अहिगयकलाकलाओ सविसेसुल्लसियअंगचंगत्तं ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530