Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 512
________________ ४८३ धनसेनकहा सा आह मह इमाए, ठिईए पज्जत्तमाजम्मं ।। १२०९ ।। करिहामि पुणो भोयणं मं वा जइ मह करिस्सए भणियं ।। झाएमि पुणो निच्चं, एयं छेयाण सुपसिद्धं ॥ १२१० ।। जीवन्त्यामपि यद्युपैति दयितो, मन्ये कलङ्कस्तदा, तस्मिन् स्निग्धजने वियोगिनि कथं, प्राणानिदध्यामहं ॥ मृत्युश्चेन्नहि तत्समागमसुखं तस्यापि मृत्युर्बुवं, कष्टं तद्विरहो विकल्पबहुलं दोलायते मे मनः ॥ १२११ ॥ तं सोऊण सहीहिं, चिंतियमेसा न होइ खलु वेसा ॥ नवरं पइव्वयाण वि जयम्मि पढम उदाहरणं ॥ १२१२ ।। ता एत्थ पत्तयालं, एयं चिय जं भणेइ धुवमेसा ।।। तं चेव विहेयव्वं, इय चितिय ताउ जंपति ।। १२१३ ॥ पियसहि ! अणंगसेणे, निय मणदोलावणेण पज्जंतं ॥ संपइ पइव्वया वयमणुचिट्ठसु नियमणोऽभिमयं ।। १२१४ ॥ अंबाए भलिस्सामो, अम्हि च्चिय तो अणंगसेणाए । भोयणपमुहं विहियं, सहीहि जणणीए से कहियं ।। १२१५ ।। नन्नागइ त्ति चिंतिय, सव्वं लीलावईए पडिवनं ॥ तत्तो अणंगसेणा, सिरिया देवी गिहे जाइ ।। १२१६ ।। अइघोरतरनिरंतरगलंतनयणंसुबिंदु-संदोहं ।। वरिसंती चलणेसुं, निवडइ नीययाए सासूए । १२१७ ।। विनवइ अंब! जइ तुह नाहं जोग्गा तहा वि आसाए । तुह पासे चिट्ठिस्सं, जा मह नाहो इहं एही ।। १२१८ ।। मह भवणं मह विहवो, मह परिवारो तहेव मह जीयं ।। धणसेण जणणि-सामिणि, सव्वं चिय तुज्झ आयत्तं ॥ १२१९ ।। सिरियादेवी चिंतइ, वेसा अच्छरियकारिणी एसा॥ धनो च्चिय मह पुत्तो, संबंधो जस्स एयाए ॥ १२२० ॥ धुवमेयं पिच्छंती, पिच्छामि नियं च नंदणं तह य ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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