Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 527
________________ ४९८ सिरिपउमप्पहसामिचरियं वेयसरसूर परमिय [१२५४] वरिसे निवविक्कमस्स वरिसाओ ॥ मग्गसिरसुद्धदसमी, तिहीइ वारम्मि तह रविणो ॥ १३९२ ।। रेवइ नक्खत्तगए हिमकिरणे वेरिभीमभीमस्स ।। चालुक्कवंसमुणिणो, निखज्जे रज्जसमयम्मि ।। १३९३ ।। सिविद्धमाणनयरे, ठिएण पज्जून्नसेट्ठिवसहीए ॥ सिरिपउमप्पहचरियं, पडिपुन्नमिणं मए विहियं ।। १३९४ ।। समणोवासगविद्दयलक्खणअब्भत्थणा इहं ।। पढमं जाया मज्झ पवित्ती, पउमप्पहचरियनिम्माणे ।। १३९५ ।। जं सिद्धंतविरुद्धं, लक्खणहीणं च जंपियं एत्थ ।। तं खमउ मज्झ सव्वं, सुयं च सुयधारिणो चेव ।। १३९६ ।। जइ वि नव कव्वविसया सत्ती मह नेव समयजलनिहिणो । परमं पारीणत्तं छेयत्तं नेव उत्तीसु ।। १३९७ ।। तहवि मए असमाए. पउमप्पहतित्थमहिमाए ।। पारद्धमिणं चरियं, निविग्धं तह य सम्मत्तं ॥ १३९८ ॥ कर्तुं न प्रकटां स्फुरत्रव नव प्रौढार्थदृष्टिं मया तो तत्वानि निवेष्टुमत्र भगवत्सिद्धान्तसिद्धानि वा ।। नैव ख्यापयितुं व्यधायि, चरितं रीतिं विदर्भोद्भवां भक्तिं किन्तु पुनः पुन र्न गदितं श्री पद्मलक्ष्मप्रभोः ।। १३९९ ।। उम्मीलंति निरंतरमत्था सद्दा य जं नवा मज्झे ।। ते देविंदगुरुणं पसायमहिमाइ मह महियं ॥ १४०० ।। तनिधीत्य देवेन्द्रगुरोः सिद्धान्तमादितः ।। श्री हरिभद्रसूरिभ्यश्चरितं निर्ममे मया ।। १४०१ ।। अंचइ सासयतित्थे नहलच्छी जाव रिक्खकुसुमेहिं ।। ससि-रविवरताडंका नंदउ चरियं इमं ताव ।। १४०२ ।। जालिहरगच्छनहयलमयंकसिरिदेवसूरिरइयम्मि ।। सिरि पउमप्पहचरिए संमत्तो तुरियपत्थावो ।। १४०३ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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