Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 519
________________ ४९० तम्मि दिणे न वि एसो, जिमिओ जिणदंसणाभावे ।। १२९२ ॥ अवरे वि दोन्नि दियहे, सरिया पूरेण तेण जिणनाहो || नविदिट्ठो उववासा, तो जाया तिनि सीहस्स ।। १२९३ ॥ मंदायमाण पूरा, सरिया जाया चउत्थ दियहंते ॥ गंतूण जिणं एसो, पणमइ वरभत्तिसंजुत्तो ॥ १२९४ ।। जिणपयपंकयलग्गो, सो जंप नाह तिन्नि अकयत्था ॥ दियहा मह वक्कता, जेसु न दिट्ठो तुमं सामि ! ॥ १२९५ ।। मह तिहुयणपरमेसर ! कह वि हु मा होज्ज तं दिणं जत्थ ॥ तुह दंसणं न जायइ, भवदुह - संभार - संहरणं ॥ १२९६ ॥ इय पवरं विन्नत्ति, कुणमाणो नेत्तनीरनिवहेण ॥ पक्खालियजिणचरणे, सह एसो अप्पणा सहसा ॥। १२९७ ॥ भत्तीए तस्स रंजिय-चित्तो होऊण झत्ति पच्चक्खो || जिणपडिमा हिट्ठायग- जक्खो जंपेउमारद्धो ॥ १२९८ ।। हे सीह ! विणीएसुं पाविय वरलीह तुज्झ भत्तीए ॥ तुट्ठो अहयं नियमणइटुं मग्गेसु वरवत्थं ॥ १२९९ ।। सो आह मज्झ रज्जं, हवेउ तुट्ठोसि जइ तुमं सच्चं ॥ जक्खो भणइ हविस्सइ, पडिवालसु किंतु छम्मासा ॥। १३०० ॥ एवं ति पयंपित्ता, सीहो ! गेहम्मि जाइ पइदियहं ।। जिणनाहं पणमंतो, अइवाहइ जाव छम्मासा ॥ १३०१ ॥ अह राया. तत्थ पुरे, गयपुत्तो जमगिहम्मि संपत्तो ॥ अहिवासियाइं तत्तो, सचिवेहिं पंच दिव्वाणि ।। १३०२ ॥ पुरबाहिरम्मि कमसो, इमाणि पत्ताणि तरुतले सुत्तं ॥ जज्जरचीरमजज्जरपुन्नं पिच्छंति अह सीहं ॥। १३०३ ॥ तो पंचहि दिव्वेहिं, नियनियवावारपयडणपरेहिं ॥ अहिसित्तो सो तत्तो, वुढामच्चेहिं मंतित्ता ॥ १३०४ ।। परिहावियवरवत्थे, आरोविय कंधराए वरकरिणो ॥ Jain Education International 2010_04 सिरिपउमप्पहसामिचरियं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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