Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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४८
अज्जेइ विहवनिवहं, अखंडचित्तेण दाणपमुहाणि || नयसंगहिय धणेहिं, करेइ सो धम्मकम्माणि ।। ११७१ ।। पत्तो उदारसेहरनरेसु रेहं च तत्थ नयरम्मि || दाणेण अहव कित्ती, हवेइ किं एत्थ अच्छरियं ॥ ११७२ ।। अन्नम्म दिने चितइ, विणा अवच्चेहि नेव वीवाहो ॥ बीएणविणा सस्सं, अत्थेण विणा हवइ अत्थो ।। ११७३ ।। निसुयं च तेण जह इह पुरम्म नामेण सुंदरो जक्खो || पाइगसएण विहवं, वियरइ आराहिओ विहिणा ।। ११७४ ।। तत्तो सत्थदियहे, इमस्स जक्खस्स मंदिरे गंतुं ॥ विहिणा पूयं काउं, विन्नत्तो तेण सो जक्खो ।। ११७५ ।। दीणाराणं कोडी, तुमए जक्खिद अमुगट्ठाणम्मि || मोत्तव्वा दायव्वा, मए वि सकलंतरा एसा ।। ११७६ ।। इय जंपिय सो वच्चइ, भणिए ठाणम्मि सो वि धणकोडिं ॥ मुयइ कलंतरलुद्धो, हवंति तियसा वि खलु लुद्धा ॥ ११७७ ।। गहिऊण इमं दव्वं, धणसेणो तत्थ चेव नयरम्मि ॥ ववसायं कुव्वंतो, कमसो विहवं समज्जेइ ।। ११७८ ।। अह तेण अज्जियाओ बायालीसं पि रयणकोडीओ ॥ जह जाइ अपुन्नेहिं, लच्छी तह एइ पुन्नेहिं ॥ ११७९ ।। तापुव्वं दव्वं, दिनं सकलंतरं पि जक्खस्स ॥ विविहाय तरलहारा, सरसा रयणावली तेण ॥। ११८० ॥ कयकिच्चो सो चलिओ, अखंडपयाणेहि नियपुराभिमुहं ॥ पढमं सुदंसणगिहे, संपत्तो तामलित्तीए ।। ११८१ ।। हाण - विलेवण पमुहं, गोरव्वं तेण निम्मियं तस्स ॥ भणिया य चित्तसाला, सज्जणकज्जे निया भज्जा ।। ११८२ ॥ अह धणसेणं दट्टु, तुट्ठो सो पुव्ववंतरो तइया ।। सव्वो वि अपुन्नेहिं रूसइ तूसेइ पुत्रेहिं ।। ११८३ ॥
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं
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