Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 508
________________ धनसेनकहा तत्थ य सुदंसणेणं, नीओ एमेव निय गेहे ॥ ११५८ ।। भोयणकरणानंतर ममस्स पत्तस्स उवरिमतलम्मि ॥ नामेण तरलहारा, मणिमाला दंसिया तेण ॥ ११५९ ।। भणियं तेण सुपुरिस ! इमाए रयणावलीए रयणाणि || तुह ववहारनिमित्तं, केत्तिय मेत्ताणि अप्पिस्सं ॥ ११६० ॥ इय भणिय रयणमालं, पासे एयस्स सो वि मोत्तूणं ॥ कज्जवसेणं उवरिमतलाओ सो कह वि अवयरिओ | ११६१ ॥ इह धणसेणं दट्टु, कुविएणेगेण वंतरसुरेण ॥ चित्ता लिहिया खुद्दासीसमहट्टीया सहसा ।। ११६२ ॥ चित्ताउ ओयरित्ता, तत्तो एसा इमस्स पच्चक्खं ॥ रयणावलियं सहसा, गिलित्तु नियद्वाणमणुपत्ता ।। ११६३ ।। विम्हयवसायगहिओ एयं पिच्छित्तु गरुयमच्छेरं ॥ अकहियवत्तो एसो, नीहरिओ तस्स गेहाओ | ११६४ ॥ वच्चतो सो चितइ, पेच्छइ मह गरुयपावपब्भारं ॥ वच्चामि जत्थ अहयं, तत्थ अणत्थाण पत्थरी ॥। ११६५ ॥ दाऊण मए दाणं, भवंतरे नूण खंडिओ भावो || तत्तो मोरहरहा, सज्जो भज्जंति मह सव्वे ॥ ११६६ ॥ अहवा : पुन्नेहिं हवइ लच्छी, जाइ अपुन्नेहिं जइ वि धीरेहिं ॥ परिचत्तविसाएहिं, ववसाओ तह वि कायव्वो । ११६७ ॥ इच्चाइ चिंतयंतो, कमसो पत्तो य पउमिणीसंडे ॥ आरुहिय तत्थ वहणं, सायरसेणेण सह चलिओ | ११६८ ॥ पत्तो सिंहलदीवं, सो चिंतइ नूण मज्झ पावाणि ॥ पायंखीणाणि तओ कह वि न भग्गं इमं वहणं ।। ११६९ ।। तो किंचि वि ववसायं इत्थ करेमि त्ति चिंतिऊं तेण ॥ पारद्धा रयणपुरे, तत्थ धणोवज्जणोवाया ॥ ११७० ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only ४७९ www.jainelibrary.org

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