Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 504
________________ धनसेनकहा निच्चं करेइ सयणुद्धारं परोवयारं च ॥ ११०७ ॥ आउक्खएण मरिडं, विजयत्थलपुरवरम्मि अइरम्मे ॥ इगविसरयणकोडीसरस्स पुरलोयतिलयस्स ॥ ११०८ ।। मंगलसमूहनिहिणो, नामेण सुमंगलस्स इब्भस्स || सिरियादेवी पियाए, उयरम्मि इमो समुप्पन्नो | ११०९ ॥ कमसो जाये पुत्ते, मायर - पियरेहिं ऊसवं काउं ॥ धण - सेणो त्ति पट्ठियमभिरामं नाममेयस्स ॥ १११० ।। कमसो परिवतो, सक्खी काऊण सो उवज्झायं ॥ गेहइ कलाकलावं, कमसो पत्तो य तारुन्नं ॥ ११११ ॥ परिणाविओ य पिउणा, धणिणो सिरिबंधुदत्तनामस्स ॥ नामेण दंसणेण य, धूयं पियदंसणं एसो ॥ १११२ । तत्थ पुरम्म दुगुंछादोसेणं मरिय सा सुसेणा वि । लीलावइवेसाए, दुहिया भावेण उववन्ना ।। १११३ ।। एसा निय जणणीए, अणंगसेण त्ति विहियवरनामा || कमसो कलाकलावं, गिण्हइ सह जोव्वणभरेण ॥। १११४ ॥ नियजम्मंतरदइयं, अनियच्छंती सविसं व नरविसरं ॥ मन्नंति जणणीए, भणिया सुपसिद्धजुत्तीहिं ॥ १११५ ॥ वयं बाल्ये डिंभांस्तरुणिमनि यूनः परिणता । वपीच्छामो वृद्धान् परिणय विधौ नः स्थितिरियं ॥ त्वयारब्धं जन्म, क्षपयितुममार्गेण विधिना, न मे गोत्रे पुत्रि, क्वचिदपि सती लांछनमभूत् ॥ १११६ ॥ अह तीए धणसेणो, दिट्ठो उज्जाणियाए उज्जाणे || गच्छंतो तो सहसा, वम्हह सरगोयरे पडिया ॥ १११७ ॥ गंतूण वासभवणे, दूसहदाहज्जरेण संतत्ता ॥ संवच्छरसयसरिसं, तं रयणि गमइ कह कह वि ॥ १११८ ।। लीलावईए पुट्ठा, जंपइ जइ जीविएण मह कज्जं ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only ४७५ www.jainelibrary.org

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