Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
४७२
लच्छि तित्थंकराणं, जइ महह तया कारविज्जासु देसे गामे वा पट्टणे वा अभयवियरणं सव्वजीवाण निच्चं ॥ १०६९ ॥ दाणाणमिह चउण्ह वि धम्मोवट्टंभकार दाणे || अवयरइ धुवं अतिहीसंविभागव्वयं एयं ॥ १०७० ।। सचित्तेण पिहाणं, निक्खेवो तम्मि कालअइवाओ ॥ ववएसमच्छरा वि य इमस्स पंचेव अइयारा ॥ १०७१ ॥ पंच अइयाररहियं, अतिहिविभागव्वयं सुमित्तो व्व ॥ जो पालइ सो पावइ भवसोक्खं मोक्खसुक्खं च ॥ १०७२ ।। तथाहि :
गंगाविस रम्मो, विजयत्थलपुरवरस्स आसन्नो || इह अत्थि सालिसीसं गामो जननयणअभिरामो ॥ १०७३ ।। तत्थ य सुया वि सुहिए, हरिसिय हियए जणे वि निवसंते ॥ एगो वसइ सुमित्तो, नाम दुहत्तो विगयपुन्नो || १०७४ ।। पयईए दाणसद्धा परायणो सो सया वि थोवं पि ॥ जस्स वि तस्स वि दाउ, भुंजइ नियमेण सुद्धमणो ॥ १०७५ ।। मन्नइ मम्मि एसो, दाणं दिनं न अन्न जम्मे वि ॥
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
कहं वि मए तो अहयं, इह अइ दुहिओ सया जाओ ।। १०७६ ॥ अन्नम्म दिने चलिओ कट्ठायणाय कट्ठमगणंतो ।।
तत्थ य गामे पायं, अइदूरे चारुदारुणि ॥ १०७७ ।। तो गहिय विविहमन्नं, सो वच्चंतो गिरिंदसिहरम्मि || काउसग्गपवन्नं, महामुणिं पेच्छए एगं ॥ १०७८ ।। तं मुणिचंदं दट्टु, मणजलनिहिणा इमस्स उल्लसियं ।। सयलम्मि वि सो जम्मे, सुदिण्णं तं चेव मन्नेइ ॥ १०७९ ॥ खणमित्तं तं समणं, चिट्ठइ सो तत्थ पज्जुवासितो || दिव्ववसा तम्मि दिणे, मासतवो तस्स सम्मत्तं ॥ १०८० ॥ पारणकज्जे पारिय, उस्सग्गो विजियसव्वउवसग्गो ॥
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530