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लच्छि तित्थंकराणं, जइ महह तया कारविज्जासु देसे गामे वा पट्टणे वा अभयवियरणं सव्वजीवाण निच्चं ॥ १०६९ ॥ दाणाणमिह चउण्ह वि धम्मोवट्टंभकार दाणे || अवयरइ धुवं अतिहीसंविभागव्वयं एयं ॥ १०७० ।। सचित्तेण पिहाणं, निक्खेवो तम्मि कालअइवाओ ॥ ववएसमच्छरा वि य इमस्स पंचेव अइयारा ॥ १०७१ ॥ पंच अइयाररहियं, अतिहिविभागव्वयं सुमित्तो व्व ॥ जो पालइ सो पावइ भवसोक्खं मोक्खसुक्खं च ॥ १०७२ ।। तथाहि :
गंगाविस रम्मो, विजयत्थलपुरवरस्स आसन्नो || इह अत्थि सालिसीसं गामो जननयणअभिरामो ॥ १०७३ ।। तत्थ य सुया वि सुहिए, हरिसिय हियए जणे वि निवसंते ॥ एगो वसइ सुमित्तो, नाम दुहत्तो विगयपुन्नो || १०७४ ।। पयईए दाणसद्धा परायणो सो सया वि थोवं पि ॥ जस्स वि तस्स वि दाउ, भुंजइ नियमेण सुद्धमणो ॥ १०७५ ।। मन्नइ मम्मि एसो, दाणं दिनं न अन्न जम्मे वि ॥
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
कहं वि मए तो अहयं, इह अइ दुहिओ सया जाओ ।। १०७६ ॥ अन्नम्म दिने चलिओ कट्ठायणाय कट्ठमगणंतो ।।
तत्थ य गामे पायं, अइदूरे चारुदारुणि ॥ १०७७ ।। तो गहिय विविहमन्नं, सो वच्चंतो गिरिंदसिहरम्मि || काउसग्गपवन्नं, महामुणिं पेच्छए एगं ॥ १०७८ ।। तं मुणिचंदं दट्टु, मणजलनिहिणा इमस्स उल्लसियं ।। सयलम्मि वि सो जम्मे, सुदिण्णं तं चेव मन्नेइ ॥ १०७९ ॥ खणमित्तं तं समणं, चिट्ठइ सो तत्थ पज्जुवासितो || दिव्ववसा तम्मि दिणे, मासतवो तस्स सम्मत्तं ॥ १०८० ॥ पारणकज्जे पारिय, उस्सग्गो विजियसव्वउवसग्गो ॥
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