Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 486
________________ ४५७ वसंतकुमारकहा कूवस्स अंतराले, लंबंतो वग्गुल्लि व्व सो हिट्ठा ।। कह कह वि निरिक्खंतो, पिच्छइ अइघोरतरं देहं ।। ८७९ ॥ दूरपसारियवयणं, गिलणमणं तह भयावहं घोरं ।। एगं अजगरभुयगं, नियरदुवारं व पच्चक्खं ॥ ८८० ॥ तह तेण अजगरस्स वि चउद्दिसिं चलवलंतजीहाला ।। उक्कडफणा कराला, दिट्ठा चउरो कसिणसप्पा ।। ८८१ ।। उड्ढे जाव निरिक्खइ, सो पिच्छइ ताव मत्तमातंगं ॥ दंत-मुसलेहि तं चिय, निहणंतं झत्ति वडविडविं ॥ ८८२ ।। तह दंतिदंतघाया, वियडियमहुकंडरस्स पडिरोमं ।। पिच्छेइ मच्छियोहं, गसिज्जमाणं नियं देहं ।। ८८३ ।। जत्थ विलग्गवि तं पि हु वडवायं नियइ काल-धवलेहिं॥ घोरेहिं उंदुरेहिं, कडकडरावेण खज्जंतं ॥ ८८४ ।। इय एवंविह दुसहदुहनिवहकडक्खियस्स एयस्स ।। तह चित्तमाउलत्तं, पत्तं जह मुणइ सो चेव ।। ८८५ ।। एत्थंतरम्मि निवडइ, विहडिय महुकंडरस्स महुबिंदुं ।। सीसम्मि तस्स तत्तो, मणायमासासिओ तेण. ।। ८८६ ।। अवरावरमहुबिंदू, संमिलिया भालघायमग्गेण ॥ तस्स वयणम्मि पत्ता, रसिया रसणाए तेणावि ॥ ८८७ ।। तह दुहकडक्खिओ वि हु पाविय महुबिंदुलेसआसायं ।। तं मन्नइ मूढप्पा, पच्चक्खं अमयनीसंदं ।। ८८८ ॥ पुणरवि मुहुत्तमित्ते, वक्कंते तस्स लालसमणस्स ।। कह कह वि अवरबिंदू, पत्तो जीहाए मग्गम्मि ।। ८८९ ॥ तं चिय विचिंतियंतो, चिराउ पत्तं पि एस महुबिंदुं । तह दुखिओ वि पावो, मन्नइ सुहियं च अप्पाणं ।। ८९० ॥ अह को वि खयरिंदो, अमंदवेगं विमाणमारूढो ।। गयणयले गच्छंतो, तं तह दुहियं नियच्छेइ ॥ ८९१ ॥ Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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