Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 485
________________ ४५६ गो- गवय-गयवरा - हय-ससय-सयसहस्स संकुलं भीमं ॥ सुन्नान्नं नीओ, दूरतरं तेण तुरएण || ८६६ ।। परिसमविवसो एसो, मुंचइ वग्गं हरी वि नियवेगं ॥ परिहरइ तओ कुमरो उत्तरइ तुरंगमार्हितो || ८६७ ।। नियसामिवसणकारणमिमो त्ति सो झत्ति निययपाणेहिं ॥ परिचत्तो गंधव्वो, कुमरो उण भमइ स्न्नम्मि || ८६८ ।। साले साले निवसइ, सेले सेले य निज्झरं पियइ ॥ सरियाए सरियाए, गेण्हइ कमलाणि भमडंतो ॥। ८६९ ॥ अह पेच्छइ मयधारा मिलंतगुंजंतभमरझंकारं ॥ नियचरणभारकंपियवसुंधरा सेलपब्भारं ॥ ८७० ।। सुंकाररावकंपियकाणण- पल्लविय वल्लि संदोहं ॥ उज्जय गज्जय नासिय दिसिवारणवारमइपसरं ।। ८७१ ॥ सरलियसुंडा दंडं, पयंडनियवेगनिज्जयसमीरं ॥ वणगयमभिमुहमिंतं कुवियकयंतं व पच्चक्खं ॥ ८७२ ॥ अह कुमरो नियविक्कमचमक्किया सेसभुवणवलओ वि ॥ गिरिगरुयकरिवरो भीओ तुरियं पलाएइ || ८७३ ॥ पुरओ कुमरो पच्छाय करिवरो दो वि गरुयतरवेगं ॥ रेहंति समारूढा, दियहविभावरि - विभाय व्व ॥ ८७४ ॥ नियवेगविजियपवणो, वणहत्थी पसरिओ तहा तइया ॥ जह सो कुम जाओ विगयासो जीवियव्वम्मि || ८७५ ॥ अह दिव्ववसा पुरओ पेच्छइ निविडंधयारदुप्पिच्छं ॥ गरुयतरमंधकूवं, कयंतमुहकुहरविवरं व ॥ ८७६ ।। वरमिह कूवावडणं, न उणो वणहत्थी चलणनिद्दलणं ॥ इय चितिय सो कुमरो झंपावइ तस्स मज्झम्मि ॥ ८७७ ॥ निवडतेणं तेणं, कह वि हु तडरूवविडविवडतरुणो ॥ पाओ पत्तो गाढं, गहिओ नियपाणिजुयलेण || ८७८ ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only सिरिपउमप्पहसामिचरियं www.jainelibrary.org

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