Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
४५४
सिरिपउमप्पहसामिचरियं
दिनाणि आउहाइं, वच्चंति य दो वि तं सेलं ।। ८४० ॥ करकलियकालसप्पं, फुरंतदप्पं मुणीसराभिमुहं ।। मुंचंतं तं रक्खं, कुमरो अवलोयए तत्थ ।। ८४१ ।। तो कुमरो आरोविय पयंडकोदंडमसमसाहसिओ।। हक्कइ रक्खसनाहं, रे पाव ! तए किमारद्धं ? ॥ ८४२ ॥ सुत्ताण पमत्ताणं, अबलाणं बालयाण समसाणं ॥ सरणागयाण वीरा पहारबुद्धिं न कुव्वंति ।। ८४३ ।। इय भणिओ दंडाहयअहि व्व सो अहिमुहो कुमारस्स ॥ ढुक्को रक्खसनाहो विउरुव्विय दिव्वसत्थाणि ।। ८४४ ।। ते कुमररक्खसिंदा समीवदेसे सहति वरमुणिणो । दिणरयणिविभाया इव सुरगिरिणो उभयपासेसु ।। ८४५ ॥ दिव्वेण दिव्व सत्थं, निहणइ सामन्नएण सामन्नं ।।। सहसा रक्खसमुक्कं, अमुक्कविक्कमधणो कुमरो ।। ८४६ ।। खणमित्तेणं दोन्नि वि नियपयनिद्दलियसेलमहिगोला ।। मोत्तुं आउहनिवहं, जुझंति य मल्लजुज्झेण ।। ८४७ ॥ कुमरेण रक्खसिंदो, निट्ठरमुट्ठीए झत्ति तह पहओ ।। जह नट्ठो वरमुणिणो सहसा सह मोहमल्लेण ।। ८४८ ।। तो उप्पन्नं केवलनाणं, सीहस्स समणसीहस्स ॥ पच्चूहवूहदलणे, सुहेण सिझंति कज्जाणि ।। ८४९ ।। नूणं महमहिमाए, निसायरो कुणइ विग्घसंघायं ।। तं तो कुमरो हणिही ममं ति परिनासए रयणी ।। ८५० ।। हणिऊण तिमिरसिविरं, मुणिणो समसीसियाए आरूढो ।। उदयसिहरम्मि तरणी, पयडियवरजोइसंभारो ॥ ८५१ ॥ रणरंगमल्लपमुहा, जक्खा जोइसिय-तियससंदोहा। मिलिया केवलिमहिमं, कुणंति सीहस्स वरमुणिणो ॥ ८५२ ॥ कंचण-कमल-निसण्णो, सीहो साहेइ वत्थुपरमत्थं ।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org |
Page Navigation
1 ... 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530