Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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वसंतकुमारकहा
४५९
भवकूवम्मि वि अहिणो, विसविसमविवागदुप्पिच्छा ॥ ९०४ ।। जह वडवायविलग्गो, तुमं तहा आउयम्मि कम्मम्मि ।। चिट्ठइ लग्गो जीवो, भवबंधकूवम्मि भीमम्मि ।। ९०५ ॥ जह एत्थ मच्छियाओ दुरंतदुक्खाउ तुज्झ लग्गाओ । तह जीवस्स वि देहं, गसंति विविहाउ वाहीओ ॥ ९०६ ।। जह वडवाओ खज्जइ, उंदुरजुयलेण हंत आउं पि । तह खज्जइ जीवाणं, पक्खेहिं बहुलधवलेहिं ।। ९०७ ।। महुबिंदुरसे गिद्धो, जह तं तह विसयसोक्खलेसम्मि ॥ गिद्धो जीवो न मुणइ, पडणं भवकूवमज्झम्मि ।। ९०८ ।। ता कुमर ! निच्छियमिणं, नीहरिओ वि हु अरनकूवाओ ।। न हि नीहरिओ सि धुवं, जइ पडसि भवंधकूवम्मि ॥ ९०९ ॥ विसयपसत्तासत्ता, भवकूव-पमाय-पमुहदुह-निवहं ।। पच्चक्खं दिलृ पि हु गणंति न हि कह वि कइया वि ।। ९१० ॥ विंसयसुहलेसगिद्धो, जीवो इंदियतुरंगहीरंतो ॥
अइ भीमे निस्सीमे, खिप्पइ संसारकंतारे ।। ९११ ॥ विसय-सुह निवहगिद्धि, तत्तो परिहरिय हरियसिवमग्गं ।। दंसियसासयसम्मं, सम्मं धम्मं करिज्जासु ॥ ९१२ ।। इय सुरतेयमुणिणो, निसम्मवयणं पयंपयं कुमरो । भयवं ! खयरेण अहं, उद्धरिओ रनकूवाओ ।। ९१३ ।। तुमए पुण उद्धरिओ दुरंतसंसार-अंध-कूवाओ । निरवज्जं पवज्जं तो मह हत्थं पयच्छेसु ।। ९१४ ।। तत्तो मुणिणा कुमरस्स तस्स जिणदेसिओ समण-धम्मो ॥ दिन्ने तत्तो अहिणवसमणो सो विहरए वसुहं ।। ९१५ ।। उवसग्गे सहमाणा, सोलस वि परीसहे य बावीसं ।। उवसमसिरिकुलमंदिरमणुपत्तो मंदरं सेलं ॥ ९१६ ।। सुरकेसरिणा वंतरसुरेण उवसग्गियस्स तस्सेव ॥
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