Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 481
________________ ४५२ सिरिपउमप्पहसामिचरियं दढबद्धाउयगंठिस्स, नत्थि मरणं अकालम्मि ।। ८१४ ॥ तरिऊण तीरदेसे, संपत्तो उत्तरम्मि कूलम्मि ।। वाणीर-जंबु-जंबीर-नाग-नारंग-तरु-कलियं ॥ ८१५ ।। कलि-अंजण-सोहंजण-धम्मण-धव-नव-पियाल-मणहरणं ।। मणहरणकुसुमपरिमलभमंतभमरोहसंच्छन्नं ।। ८१६ ।। संच्छन्नमिहिरकिरणं, परायपिंजरियसयलदिसिचक्कं ॥ पिच्छेइ कयंबनाम, आरामं निच्चमभिरामं ॥ ८१७ ॥ मज्झम्मि तस्स पविसेइ, तरुणतरुनियरमज्झयारम्मि ॥ पिच्छेइ जक्ख-मंदिर-ममंदमणि-किरण-दुप्पेच्छं ।। ८१८ ।। उल्लसियकोउहल्लो, सो पिच्छेइ झत्ति भवणमज्झम्मि ।। रणरंगमल्लसरिसं, पडिमं जक्खस्स अप्पडिमं ॥ ८१९ ।। नूणं इमेण हरिओ केण व कज्जेण चिंतिउं एवं ।। दुहवारणए निवसइ, मणिगणमयमत्तवारणए ।। ८२० ।। अह जक्खकुमाराणं, संलावोवसरदाणहेउं वा ।। अवयरइ अवरजलनिहितीरतरंगेसु दिणनाहो ॥ ८२१ ।। अत्थमियदिणनाहे, उदयपत्तम्मि तारया नाहे ।। एत्थंतरम्मि तिमिरं, खलजणसरिसं वियंभेइ ॥ ८२२ ।। पसरंति लोयलोयण-अवमच्चुकरा तमोरगा तेसिं ।। तेणं चिय सिरमणिणो तारयछउमेण दीसंति ।। ८२३ ।। दुव्वयारअंधयारे, पसरते जलथलाइववहारो ।। न हि दस दिसिवित्थारो, लक्खिज्जइ नियय हत्थो वि ॥ ८२४ ।। अह पलयसमयगज्जिर-मेहसमूहाण घोरसंरावं ।। सहसा विडंबयंतो, वित्थरिओ अट्टहासरवो ॥ ८२५ ॥ अह जक्खो पच्चक्खो, होऊणं वयइ कुमर ! एयस्स ।। आरामस्स अदूरे, एस गिरि मंदरो नाम ॥ ८२६ ॥ एयस्स सिहरदेसे, अवरं सिहरं व निच्चलसरीरो । Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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