Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
४५५
वसंतकुमारकहा
भो भव्वा भवभीया, जइ तत्तो कुणह जिणधम्म।। ८५३ ॥ मुंचय विसयपिवासं, पसमामयरसरसायणं पियह ।। निज्जिणह निरयमग्गं, इंदियवग्गं समग्गं पि ॥ ८५४ ।।
अवि पज्जलिओ जलणो तिप्पइ कइया वि इंधणगणेहिं ॥ विसयामिसेण अप्पा, एस दुरप्पा न तिप्पेइ ।। ८५५ ।। अवि जलही-सलिलेहिं, महल्लकल्लोलपूरियदियंतो॥ तिप्पइ पावो जीवो न तिप्पए विसय-विसगिद्धो ।। ८५६ ॥
आवायमित्तमहुरं, दारुणपरिणाममसमदुहहेउं ।। विस-विसमं विसय-सुहं, वज्जसु सिव-सोक्खमिक्खंतो ।। ८५७ ॥ भणियं च :आवायमित्त महुरा, विवायकडुया विसोवमा विसया ॥ अविवेगजणायरिया, विवेइजणवज्जिया पावा ।। ८५८ ॥ एत्थंतरम्मि कुमरो पुच्छइ भववास-पासबंधाओ ।। किह छुट्टोसि मुणीसर ! वेरग्गे कारणं किं वा? ॥ ८५९ ॥ अह जंपइ मुणिनाहो, कुमार ! एगग्गमाणसो होउं ॥ निसुणसु साहिज्जं तं, मह चरियं जणिय अच्छरियं ।। ८६० ।। फालिहमणिमयभित्तिसंकंत-ससंक-कंतरूवेहिं । कयमिणनिच्चकलहा, विज्जइ विज्जापुरी भरहे ॥ ८६१ ॥ वेरिपुरंधिनिरग्गलगलंतनवनेत्तसलिलधाराहि ॥ सिप्पंतकंतिकाणण-निवहो वि जो तहिं राया ॥ ८६२ ॥ तस्स य अणुद्धराए, मणोरमायारहरियजणनयणो । देवीए सुओ जाओ, सीहो नामेण सुपसिद्धो ॥ ८६३ ॥ वम्महनिवासभवणं, वियारसयसगोयरं रम्मं ।। परिवड्डियरंगत्तं, कमसो नवजोव्वणं पत्तो ।। ८६४ ।। अह वाहकेलिदेसे, केलिनिमित्तं तुरंगमारूढो । विविरीयसिक्खिएणं, तेण वि हरिओ इमो सहसा ।। ८६५ ।।
Jain Education International 2010_04
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530