Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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सिरिपउमप्पहसामिचरियं सो रत्तच्छिकरालो, महिवालो भिउडिभुंगरनिडालो ।। पभणइ पावे ! तं चिय, संभारसु मज्झ वीसरियं ॥ ५८६ ।। सा आह नाह ! तुह मुहगिराए नियए करेमि वरतुरए ।। अनह मह घर-दव्वं, सव्वं चिय तुज्झ आयत्तं ॥ ५८७ ।। इय जंपिऊण एसा, निवइ निओगीहिं पुव्वछेवाडि ।। वायावइ मन्नावइ, निय तुरयभवे निए तुरए ।। ५८८ ।। सामंति-मंति-तलवर-पुरोहियप्पमुहसयलपुरलोओ।। तिस्सा बुद्धिविसेसं, कलिऊणं विम्हिओ जाओ ।। ५८९ ।। निय जणय-मणय-तोसो, मसिकुच्चो नरवइस्स मुहकमले । जगवं विहिओ तीए, उक्करिसो बंधुवग्गस्स ।। ५९० ॥ हरिसियमाण पुरजण-नियरेहिं पसंसिया इमा बाला ।। रायभवणाउ तत्तो, संपत्ता जणयभवणम्मि ।। ५९१ ।। तिस्सा तं विन्नाणं, अवमाणं नियगयं च पेच्छंतो ।। विम्हयविसायगहिओ, कयपडिकयमाणसो राया ।। ५९२ ।। समयंतरम्मि कन्नं तं चिय मग्गेइ परिणयनिमित्तं ।। भयभीओ सो सेट्ठी, परमत्थं पुच्छए दुहियं ।। ५९३ ।। सा चंदलेहकन्ना, हरिसभरुब्भिन्नरम्मरोमंचा ।। पभणइ कुणसु विवाहं, चयसु भयं नियय चित्तम्मि ।। ५९४ ।। चंदणसारेण तओ पुहईसरचंदलेहकन्नाणं ।। महया विच्छड्डेणं, वीवाह-महूसवो विहिओ ॥ ५९५ ॥ तीसे नवधवलहरं, राया अप्पित्तु पभणए जइ वि ।। धुत्तीण महाधुत्ती, तह वि हु छलियासि निब्भंतं ॥ ५९६ ॥ एसा मज्झ पइन्ना नाहं परिणयणदिवसमारब्भ ।। तुमए सह संलावं, करेमि रत्तेण चित्तेण ।। ५९७ ।। एसा धिट्ठा जंपइ, मज्झ वि निसुणेसु एरिस पइन्नं ।। तुममेव देव ! निययं उच्चिटुं जेमइस्सामि ॥ ५९८ ।।
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