Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad
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४४९
वसंतकुमारकहा
फारफरक्किदफरुओ करवालकरो परिहबाहू ॥ ७७६ ।। गोउरकवाडसंपुङ-सच्छहअइनिविडवियडवच्छयलो ।। मंसबहलंदेसो, अत्थाणसहाए संपत्तो ॥ ७७७ ॥ रना दिने सीहासणम्मि, निवपायविहियपणिवाओ ।। उवविट्ठो अह पुट्ठो, कहेसु निय नाम गोत्ताइं ।। ७७८ ॥ सो जंपइ पुहईसर ! कलिंगदेसाउ एत्थ पत्तो हं।। रणरंगमल्लनामो, सुहडो सोऊण तुह कित्तिं ।। ७७९ ।। घणसारहारहरससितुसारपब्भारसच्छहं कित्तिं ।। तुह तियसकामिणीओ गिरिसरितीरेस गायंति ।। ७८० ।। एयं पि मए निसुयं, रायंगरुहो वसंतवरकुमरो ।। जुज्झम्मि जयं तस्स वि गव्वं अवहरइ नीसेसं ।। ७८१ ।। तो कुमरो अवरो वा जो बाहुबलस्स गव्वमुव्वहइ ।। सो मल्लनिजुद्धेणं, जुज्झउ अतिही अहं पत्तो ।। ७८२ ।। दट्ठण तस्स हिययावटुंभमसेसमंति-सामंता ।। लिहिय व्व कीलिया विव न किं पि पडिजंपिया तस्स ॥ ७८३ जंपइ वसंतकुमारों, गव्वो पुरिसेण नेव कायव्वो ।। . गज्जाउ पव्वयाउ व दुरंतदुक्खाय नणु पडणं ।। ७८४ ॥ इह संति के वि ते वि हु जेसिं चरियं पि भुवणअच्छरियं ।। कुव्वंतं सव्वेसिं, निहणइ गव्वस्स सव्वस्सं ।। ७८५ ।। धीरेण वीरेण वि दक्खेण वि तह य थूललक्खेण ।। अप्पा बहुमाहप्पं, न य निय संकप्पओ नेओ ।। ७८६ ।। उक्तं च :दाने तपसि शौर्ये च, विज्ञाने विनये नये ॥ विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुंधरा ।। ७८७ ।। तह वि हु भणियम्मि तए भणामि पूरेसु कोउयं मज्झ ।।
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