Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 465
________________ ४३६ सिरिपउमप्पहसामिचरियं मह मंदिरपज्जंतं, कुणसु तुमं तह य मज्झ भवणस्स ।। हिट्ठा सुरंगमज्झे, मणिभवणं कुणसु रमणिज्जं ॥ ६१२ ॥ तव्वयणसवणसमयाणंतरमेव य समग्गसामग्गि ।। निम्मावइ तो सिट्ठी, अन्नं पि हु तीए जं भणियं ।। ६१३ ।। तत्तो निय भवणाउ, सुरंगमज्झेण जणयभवणम्मि ।। आगंतुं अज्झावइ, कन्नाउ कलाकलावं सा ।। ६१४ ।। गीए तह संगीए, रावणहत्थम्मि वेणु-वीणाए ।। नट्टे वज्जाउज्जे, निउणत्तं ताण तो जायं ॥ ६१५ ॥ तो सा पायालगिहे, अमुल्लमणिरयणकोडिसंघडिए ।। रविकंत-किरण-लहरी-संहरिया सेसतिमिर-भरे ॥ ६१६ ॥ अवितक्कियदिवसनिसा विभायपरभायपत्तरमणिज्जे ।। मणिमइय खंभमंडलमंडवमंडियदुवारम्मि ।। ६१७ ।। सीहासणे निसीयइ भासुरसिंगारतारसव्वंगा ॥ समवेस समविभूसणकन्ना पन्नास परियरिया ॥ ६१८ ।। तिसृभिः विशेषकम् तव्वयणेण नीसीहे समहत्थं कित्तियाउ कन्नाओ ॥ दिति बहुबुक्कढक्का, हुडुक्करवभरियदिसिचक्कं ॥ ६१९ ।। तालिं धरिति काउ वि वज्जं वायंति काउ आउज्जं ।। तयणु वरवेणुवीणं, महुरं वायंति काउ वि ।। ६२० ।। सत्तसरभेयभिन्नं, वीणं एयाहिं वाइयं तत्तो ।। नियभवणठिओ राया, सोउं एवं विचितेइ ।। ६२१ ॥ एयं किमंतरिक्खे, पुरि मज्झे किंच किंच गिरि मज्झे । • पायालपुरे किं वा कस्स पुरो विहिय सुकयस्स? ॥ ६२२ ।। किं नरमिहुणं किं वा, वीणं वाएइ तुंबरु अहवा ॥ किं वा देवी वाणी, सयमेव य वायए एसा ।। ६२३ ।। किं वा मह चिंताए, चिया समाणाए विग्घभूयाए ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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