Book Title: Paumappahasami Cariyam
Author(s): Devsuri, Rupendrakumar Pagariya
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 467
________________ ४३८ सिरिपउमप्पहसामिचरियं संगीयरंगभंग, कुव्वंतो कलयलो विहिओ ॥ ६३६ ।। तत्तो विसन्नचित्तो हियसव्वस्सो व्व झायए राया ।। तं चेव दिव्वगीयं, पहिओ सलिलंबमरुमग्गे ॥ ६३७ ।। उइए वि दिवसनाहे, नढेसु वि निसियरेसु सव्वेसु ।। गरुय-विसाय-पिसाओ, न हु नट्ठो तस्स निवइस्स ।। ६३८ ॥ दिणयर-कर-संघडियं, अंभो अ वणं पि वियसियं सयलं॥ रन्नो उण मुहकमलं, मिणालमहियं तहिं जायं ।। ६३९ ।। अत्थाण-मंडवगओ, जाणगजोइसिय-पुच्छणा पउणो ॥ निच्चं पि सो निसीहं, समीहयंतो गमइ कालं ॥ ६४० ॥ अह तत्थ पुरे रन्नो, संगयसंगीय-हरिय-हिययस्स ।। तिस्सा संकेएणं पत्ता, वरजोगिणी एगा ।। ६४१ ।। जायकेरिसी :हेममय-दंड-मंडिय-कर-किसलासेसजोइणीहितो ॥ गढ-गहिय-चंड-दंडा, नज्जइ निययाए सत्तीए ।। ६४२ ॥ रयणमयपाउयाओ आरूढा गाढ-गरुयवटुंभा ।। उप्पयणमणा नज्जइ संचरमाणा वि धरणीए ।। ६४३ ।। नेत्तमयं तलवटें, सविब्भमं सा सिरम्मि कलयंती ॥ पेच्छइ लोयाण तहिं दित्तिं नेत्ताण मिलियं च ।। ६४४ ।। कर-किसलय-कलिय-नित्तल अंक्खावलि मालिया सहइ एसा ।। किसलयजुयाइं सिद्धी, वीयाणि समुव्वहंति व्व ।। ६४५ ॥ नवरविकिरणमयं पिव कलयंती कणयजोग पटुं व ॥ जद्दरवरपावरणं, धारंती ससिकरचयं व ॥ ६४६ ।। फलिहंकमणिगणंकियमंदोलिरमंसुजालदिप्पंतं ॥ सवणजुयलम्मि कुंडलजुयलं लीलाए धारती ।। ६४७ ।। सा सहइ सवणमूलं गयाहि निच्चं पि विनविज्जंती ।। Jain Education International 2010_04 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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